बारां- कोटा से सटे बारां जिला मुख्यालय से 28 किमी दूर सोरसन में ब्रह्माणी माता का प्राचीन मंदिर है। ब्रह्मणी माता प्रतिमा की पीठ की पूजा होती है। यहां ब्रह्मणी माता का प्राकट्य करीब 700 वर्ष पहले हुआ बताया जाता है। तब यह देवी सोरसन के खोखर गौड़ ब्राह्मण पर प्रसन्न हुई थी। तब से खोखरजी के वंशज ही निज मंदिर में पूजा करते हैं।
Image result for बारां ब्रह्माणी माता

माता के पीठ का श्रृंगार करने की परम्परा सैकड़ो सालो से चली आ रही हैं। माता के श्रंगार के बाद यहां के विधि विधान से उनकी पूजा की जाती है। सोर्सन गाँव के लोगो की 'ब्राह्मणी माताजी' के मंदिर से काफी आस्था रखते हैं मंदिर में जल रही अखंड ज्योति पिछले 400 सालों से जल रही है। शिवरात्री के दिन यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है और भारी संख्या में पशुओं की बिक्री होती है।

☯ मंदिर के तीन प्रवेश द्वारों में से दो द्वार कलात्मक हैं। मुख्य प्रवेश द्वार पूर्वाभिमुख है।

☯ परिसर के मध्य स्थित देवी मंदिर में गुम्बद द्वार मंडप और शिखरयुक्त गर्भगृह है।

☯ चट्टान में बनी चरण चौकी पर ब्रह्माणी माता की पाषाण प्रतिमा विराजमान है।

☯ इसकी मुख्य विशेषता यह है कि अग्रभाग की पूजा ना होकर पृष्ठ भाग (पीठ) की पूजा-अर्चना होती है।

☯ दुनिया का पहला मंदिर है, जहां देवी विग्रह के पृष्ठ भाग को पूजा जाता है।

☯ स्थानीय लोग इसे पीठ पूजाना कहते हैं।

☯ देवी प्रतिमा की पीठ पर प्रतिदिन सिंदूर लगाया जाता है और कनेर के पत्तों से श्रृंगार किया जाता है।

☯ देवी को नियमित रूप से दाल-बाटी का भोग लगाया जाता है। देवी नंदवाना बोहरा परिवार की आराध्य देवी हैं, जिसमें मानाजी बोहरा का जन्म हुआ था।

☯ परंपराओं में एक गुजराती परिवार के सदस्यों को सप्तशती का पाठ करने, मीणों के राव भाट परिवार के सदस्यों को नगाड़े बजाने का अधिकार मिला हुआ है। मंदिर चारों तरफ परकोटे से घिरा हुआ है।

☯ गर्भगृह के प्रवेश द्वार की चौखट 5 गुणा 7 के आकार की है, लेकिन प्रवेश मार्ग 3 गुणा ढ़ाई फीट का ही है। इसमें झुककर ही प्रवेश किया जा सकता है। पुजारी झुककर पूजा करते हैं। मंदिर के गर्भगृह में विशाल चट्टान है।