राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में सीकर-जयपुर मार्ग पर गोरिया के पास जीणमाता गांव में देवीस्वरूपा जीण माता का प्राचीन मंदिर बना हुआ है। जीण माता का वास्तविक नाम जयन्ती माता है। माता दुर्गा की अवतार हैं। यह मंदिर शक्ति की देवी को समर्पित है। घने जंगल से घिरा हुआ है यह मंदिर तीन छोटी पहाड़ों के संगम पर स्थित है।
जीण माता का यह मन्दिर बहुत प्राचीन शक्ति पीठ है। जीण माता का मंदिर दक्षिण मुखी है। लेकिन मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व में है। मंदिर की दीवारों पर तांत्रिकों व वाममार्गियों की मूर्तियां लगी हैं। जिससे यह भी सिद्ध होता है कि उक्त सिद्धांत के मतावलंबियों का इस मंदिर पर कभी अधिकार रहा है या उनकी यह साधना स्थली रही है।
लोगों का मानना है कि यह मंदिर 1000 साल पुराना है। लेकिन कई इतिहासकार आठवीं सदी में जीण माता मंदिर का निर्माण काल मानते हैं। मंदिर में अलग-अलग आठ शिलालेख लगे हैं जो मंदिर की प्राचीनतम के सबल प्रमाण है। उपरोक्त शिलालेखों में सबसे पुराना शिलालेख संवत 1029 का है पर उसमें मंदिर के निर्माण का समय नहीं लिखा गया है। इसलिए यह मंदिर उससे भी अधिक प्राचीन है।
देवी जीण माता ने सबसे बड़ा चमत्कार मुगल बादशाह औरंगजेब को दिखाया था। औरंगजेब ने शेखावाटी के मंदिरों को तोडऩे के लिए एक विशाल सेना भेजी थी। यह सेना हर्ष पर्वत पर शिव व हर्षनाथ भैरव का मंदिर खंडित कर जीण मंदिर को खंडित करने आगे बढ़ी। कहते है पुजारियों के आर्त स्वर में माँ से विनय करने पर माँ जीण ने भँवरे (बड़ी मधुमक्खियां) छोड़ दिए जिनके आक्रमण से औरंगजेब की शाही सेना लहूलुहान हो भाग खड़ी हुई।
कहते हैं स्वयं बादशाह की हालत बहुत गंभीर हो गई तब बादशाह ने हाथ जोड़ कर माँ जीण से क्षमा याचना कर माँ के मंदिर में अखंड दीप के लिए सवामण तेल प्रतिमाह दिल्ली से भेजने का वचन दिया। वह तेल कई वर्षों तक दिल्ली से आता रहा फिर दिल्ली के बजाय जयपुर से आने लगा। बाद में जयपुर महाराजा ने इस तेल को मासिक के बजाय वर्ष में दो बार नवरात्रों के समय भिजवाना आरंभ कर दिया। और महाराजा मान सिंह जी के समय तेल के स्थान पर नगद 20 रु. 3 आने प्रतिमाह कर दिए। जो निरंतर प्राप्त होते रहे।
औरंगजेब को चमत्कार दिखाने के बाद जीण माता भौरों की देवी भी कही जाने लगीं। माता की शक्ति को जानकर मुगल बादशाह ने वहां पर भंवरों की रानी के नाम से शुद्ध खालिस सोने की बनी मूर्ति भेंट की।
औरंगजेब ने भी सवामन तेल का दीपक अखंड ज्योति के रूप में मंदिर में स्थापित किया जो आज तक प्रज्वलित है। पहले शासन व्यवस्था करता था, आज भक्तों के द्वारा सुव्यवस्था है। औरंगजेब को कुष्ठ रोग हो गया था। उसने कुष्ठ निवारण के लिए मां से प्रार्थना की। और मन्नत मांगी की अगर कुष्ठ ठीक हो जाएगा तो वह जीण के मंदिर में एक स्वर्ण छत्र चढ़ाएगा। बादशाह का कुष्ठ रोग ठीक होने पर उन्होंने माता के मंदिर में सोने का छत्र चढ़ाया। यह छत्र आज भी मंदिर में विद्यमान है।
लोगों का मानना है कि यह मंदिर 1000 साल पुराना है। लेकिन कई इतिहासकार आठवीं सदी में जीण माता मंदिर का निर्माण काल मानते हैं। मंदिर में अलग-अलग आठ शिलालेख लगे हैं जो मंदिर की प्राचीनतम के सबल प्रमाण है। उपरोक्त शिलालेखों में सबसे पुराना शिलालेख संवत 1029 का है पर उसमें मंदिर के निर्माण का समय नहीं लिखा गया है। इसलिए यह मंदिर उससे भी अधिक प्राचीन है।
मधुमक्खियों के आक्रमण से भागी सेना
कहते हैं स्वयं बादशाह की हालत बहुत गंभीर हो गई तब बादशाह ने हाथ जोड़ कर माँ जीण से क्षमा याचना कर माँ के मंदिर में अखंड दीप के लिए सवामण तेल प्रतिमाह दिल्ली से भेजने का वचन दिया। वह तेल कई वर्षों तक दिल्ली से आता रहा फिर दिल्ली के बजाय जयपुर से आने लगा। बाद में जयपुर महाराजा ने इस तेल को मासिक के बजाय वर्ष में दो बार नवरात्रों के समय भिजवाना आरंभ कर दिया। और महाराजा मान सिंह जी के समय तेल के स्थान पर नगद 20 रु. 3 आने प्रतिमाह कर दिए। जो निरंतर प्राप्त होते रहे।
औरंगजेब को चमत्कार दिखाने के बाद जीण माता भौरों की देवी भी कही जाने लगीं। माता की शक्ति को जानकर मुगल बादशाह ने वहां पर भंवरों की रानी के नाम से शुद्ध खालिस सोने की बनी मूर्ति भेंट की।
औरंगजेब ने भी सवामन तेल का दीपक अखंड ज्योति के रूप में मंदिर में स्थापित किया जो आज तक प्रज्वलित है। पहले शासन व्यवस्था करता था, आज भक्तों के द्वारा सुव्यवस्था है। औरंगजेब को कुष्ठ रोग हो गया था। उसने कुष्ठ निवारण के लिए मां से प्रार्थना की। और मन्नत मांगी की अगर कुष्ठ ठीक हो जाएगा तो वह जीण के मंदिर में एक स्वर्ण छत्र चढ़ाएगा। बादशाह का कुष्ठ रोग ठीक होने पर उन्होंने माता के मंदिर में सोने का छत्र चढ़ाया। यह छत्र आज भी मंदिर में विद्यमान है।