अजमेर में स्थित इस किले का निर्माण 1570 में अकबर ने करवाया था। इस किले को दौलतखाना या मैग्जीन के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू-मुस्लिम पद्धति से निर्मित इस किले का निर्माण अकबर ने ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने हेतु करवाया था। 1576 में महाराजा प्रताप के विरुद्ध हल्दीघाटी युद्ध की योजना को भी अन्तिम रूप इसी किले में दिया गया था।
जहाँगीर मेवाड़ को अधीनता में लाने के लिए तीन वर्ष तक इसी किले में रूका था। इस दौरान ब्रिटिश सम्राट जेम्स प्रथम के राजदूतसर टॉमस रो ने इसी किले में 10 जनवरी, 1616 को जहाँगीर से मुलाकात की थी। 1801 में अंग्रेजों ने इस किले पर अधिकार कर इसे अपना शस्त्रागार (मैग्जीन) बना लिया। किले में स्थित आलीशान चित्रकारी तथा जनाने कक्षों की दीवारों में पच्चीकारी का कार्य बड़ा कलापूर्ण ढंग से किया गया है। वर्तमान में यहाँ राजकीय संग्रहालय स्थित है।