बीस पच्चीस झोंपड़ियों वाले एक छोटे गांव का बूढ़ा बिलोच सरदार कांगड़ा खाट पर पड़ा मौत से जूझ रहा था पर उसकी सांसे निकलते निकलते अटक रही थी उसे एक छटपटाहट ने बैचेन कर रखा था,शिकारपुर के पठान सरदार कांगड़ा की घोड़ियाँ लुट ले गए थे और वह उन्हें न तो वापस ला पाया था और न ही शिकारपुर के पठानों से बदला ले पाया था। इसी नकायामाबी से वह अपने आप को अपमानित महसूस कर रहा था बिना बदला लिए कैसे मरे इसीलिए उसकी सांसे अटकी थी।
लड़का होता तो बदला लेता पर सरदार कांगड़ा के एक औलाद थी वो भी एक पन्द्रह वर्ष की लड़की " पिउसिंध "। पिउसिंध अपने बाप की मानसिक पीड़ा समझ रही थी उससे अपने बाप की आँखों में टपक रही घोर निराशा देखी ना जा रही थी सो उसने अपने बाप से कहा - "कि आप मुझे पुत्र से कम ना समझे,मैं आपको वचन देती हूँ कि शिकारपुर के पठानों से आपके अपमान का बदला लुंगी और आपकी लुटी गई घोड़ियाँ वापस लाऊंगी।"
बूढ़े बाप के कानों में बेटी के वीरतापूर्ण वचन सुन अमृत सा बरसा। " तो ला पंजा दे।" उसने खाट पड़े पड़े अपना हाथ पसारा।
पिउसिंध ने हाथ पर हाथ रखकर उसके अपमान का बदला लेने का वचन दिया तो कांगड़ा सरदार के प्राण संतोष के साथ निकल गए।
पिता की मृत्यु के बाद पिउसिंध ने अपने कंधो पर लटकते बालों का जुड़ा बाँधा,मर्दानी पौशाक धारण की,हाथ में तीरकमान लिए और घोड़े पर सवार हो बिलोच जवानों के साथ शस्त्र विधा का अभ्यास करना शुरू कर दिया। दूर दूर तक घुड़सवारी करना,कमान पर तीर चढ़ा निशाने साधना उसकी दैनिक दिनचर्या का अंग बन गया। शस्त्र विधा के अभ्यास व पिता को दिए वचन को पूरा करने की धुन में वह भूल ही गयी कि वह सोलह वर्ष की एक सुंदरी है वह तो अपने आप को बिलोच सरदार का बेटा ही समझने लगी।
बिलोच सैनिक पौशाक पहने,तीर कमान हाथ में लिए जब वह घोड़े पर बैठे निकलती तो देखने वालों की नजरे ही ठिठक जाती अधेड़ औरतों के मन में अभिलाषा जागती काश उनका बेटा भी उसकी तरह हो। कुंवारी लड़कियां पति के काल्पनिक चित्र में उसका रंग घोलने लगती। तीर चलाने की विद्या में तो वह इतनी पारंगत हो गयी कि किसी धुरंधर तीरंदाज का छोड़ा तीर पांच सौ कदम जाता तो उसका छोड़ा तीर सीधा हजार कदम जाकर सटीक निशाने पर लगता।
एक दिन घोड़ा दौड़ाती वह काफी दूर निकल गयी थी और थक हार कर एक तालाब के किनारे अपना घोड़ा बांध विश्राम कर रही थी तभी वहां पाटन गांव का रहने वाला भीमजी भाटी अपने साथियों सहित तालाब पर अपने घोड़ों को पानी पिलाने आया उसने देखा एक खुबसूरत नौजवान तालाब पर बैठा विश्राम कर रहा है। भीमजी भाटी ने अपना परिचय देते हुए उस युवक से परिचय पूछा।
युवक ने कहा- "वह बिलोच सरदार कांगड़ा का बेटा है।" पर आपतो सिंध की और के रहने वाले है ,कहो इधर कैसे आना हुआ ?
भीमजी ने बताया - शिकारपुर के पठानों के पास सुना है बहुत अच्छी घोड़ियाँ है सो वहीँ उन्हें लेने जा रहे है।
युवक बोला - शिकारपुर जाने के इरादे से ही हम आये है। हमने भी पठानों की घोड़ियाँ की बड़ी प्रसंसा सुनी है।
भीमजी ने कहा- मेरे साथ पचास घुड़सवार है आपके साथ ?
युवक मुस्कराते हुए बोला -
" कंथा रण में जायके,कोई जांवे छै साथ।
साथी थारा तीन है,हियो कटारी हाथ।।"
रण में तीन ही साथी होते है। साहस,शस्त्र और बाहुबल। ठाकुर ! मेरे तो बस ये ही तीन साथी है।
भीमजी युवक व अपने दल सहित शिकारपुर के पास पहुंचा। भीमजी के एक टोह लेने गए आदमी ने बताया कि पठानों की घोड़ियाँ को कुछ चरवाह चरा रहे है और यही मौका उन्हें लुटने का। मौका देख उन्होंने घोड़ियाँ लुट ली जिनकी संख्या बहुत थी।
शिकारपुर घोड़ियों की लुट का पता चलते ही पठान तीर कमान ले अपने घोड़ों पर सवार हो पीछा करने लगे। उनके घोड़ों के टापों से उड़ती खेह देख युवक बोला पठान आ रहे है घोड़ियाँ बहुत है इन्हें ले जाने का एक काम आप करो और पठानों को रोकने का दूसरा काम मैं करता हूँ।
भीमजी के आदमी घोड़ियों को तेज भागते ले जाने लगे और युवक ने एक ऊँचे टिबे पर चढ़कर पठानों को रोकने के लिए मोर्चा लिया और अपने घातक तीरों के प्रहार से कई पठानों को धराशायी कर दिया बाकी पठान उसके तीरों के घातक प्रहारों से डर भाग खड़े हुए। घोड़ियाँ के पैरों के निशान देखते देखते युवक पीछा करता हुआ भीमजी भाटी के पास पहुंचा और अपने हिस्से की आधी घोड़ियाँ मांगी।
पर भीमजी के साथियों ने बखेड़ा खड़ा किया। आधी कैसे दे दें ? तुम एक और हम इतने सारे !!
युवक ने कहा - आधी क्यों नहीं ? आधा काम तुम सबने मिलकर किया और आधा मैंने अकेले ने। तुमने घोड़ियाँ घेरी, मैंने पठानों को रोका।
भीमजी के आदमियों ने ना नुकर करने पर युवक ने कमान पर तीर चढ़ाया और कहा -फिर हो जाय फैसला, जो होगा सो देखा जायेगा।
भीमजी के साथी उसके तेवर देख हक्के बक्के रह गए आखिर भीमजी ने बीच बचाव कर घोड़ियों को दो हिस्सों में बाँट दिया पर एक घोड़ा अधिक रह गया,भीमजी के साथियों ने फिर झगडा किया कि यह घोड़ा तो हम रखेंगे पर देखते ही देखते युवक ने तलवार के एक वार से घोड़े के दो टुकड़े कर दिए कि अब ले लो अपना आधा हिस्सा।
अपने हिस्से की घोड़ियों को लेकर युवक कुछ सौ कदम ही जाकर वापस आया और भीमजी से कहने लगा - भीमजी मेरे हिस्से की घोड़ियाँ भी आप रखलो। मैं इन्हें ले जाकर क्या करूँगा ? वो तो अपने हक़ का हिस्सा लेना था सो ले लिया। अब सारी घोड़ियाँ आप अपने पास ही रखिये।और अपने हिस्से की घोड़ियाँ भीमजी को दे बिलोच नौजवान अपने घोड़े पर चढ़ वापस रवाना हुआ।
अपने हिस्से की घोड़ियाँ भीमजी को दे बिलोच युवक ने अपने घोड़े को एड लगाईं और हवा से बाते करना लगा। भीमजी ने अपने साथियों को समझाया तुमने उस युवक से झगड़ा कर ठीक नहीं किया तुम्हारे झगड़े के चलते हमने एक बहादुर दोस्त खो दिया। अब तुम घोड़ियाँ लेकर चलो मैं उसे मनाकर वापस लाता हूँ।
भीमजी उसे खोजते हुए चल पड़े,उन्हें रास्ते में एक बावड़ी के पास युवक का घोड़ा बंधा दिखाई दिया,भीमजी ने बावड़ी के पास जाकर अन्दर झाँका तो वे दंग रह गए उनकी साँसे रुक गई। बावड़ी में एक जवान सुन्दरी अपना बदन मलमल कर स्नान कर रही थी।
आज पिउसिंध एकांत देख वस्त्र उतार नहाने बैठी थी। उसके बाल कमर तक लटक रहे थे उसका गोरा शरीर कुंदन सा दमक रहा था। भीमजी की तो आवाज देने की हिम्मत भी नहीं पड़ी। वे वापस मुड़कर कुछ सौ कदम गए और फिर खांसते खांसते बावड़ी के पास तक आये, थोड़ी देर में पिउसिंध नहाने के बाद कपडे पहन हाथों में तीर कमान नचाती बाहर निकली।
भीमजी आँखों में रंग भर,मुस्कराहट बिखेरते बोला- नाराज हो गए ? अब घोड़ियाँ हाजिर और मैं भी हाजिर। चलो मेरे साथ मेरे गांव,तुम हुक्म दो हम चाकरी करेंगे। अब तो जीना तुम्हारे साथ मरना तुम्हारे साथ।
पिउसिंध मुस्कराते बोली -" मैं बिलोच मुस्लमान, तुम भाटी राजपूत।"
भीमजी बोला-" जात पात गंवार लोग देखते है। राजपूत की जाति है वीरता। तुम वीर ,मैं वीर सो हमारी जाति एक ही हुई ना। अब तो मंजूर ?
और पिउसिंध ने शरमाते हुए हामी भरदी। भीमजी उसे लेकर अपने गांव पाटन आ गया। दोनों अपना घर बसा चैन से रहने लगे। उनके दो सुन्दर बेटे भी हुए एक का नाम रखा जखड़ा और दुसरे का मुखड़ा। पिउसिंध ने दोनों बेटों को तीर कमान और तलवार चलाने की शिक्षा दी।
एक दिन एक गांव में एक दौड़कर आते ग्वाले ने सुचना दी कि " एक शेर गांव की तरफ आ गया और एक गाय को उसने मार गिराया।" सुनकर जखड़ा व मुखड़ा दोनों भाई उस और भागे। शेर ने देखते ही उन पर हमला किया पर जखड़ा ने तलवार के एक ही वार शेर को ढेर कर दिया। और दोनों भाई शेर की पूंछ पकड़ घसीटते हुए गांव में ले आये। भीमजी पुत्रों की बहादुरी देख खुश होते बोला- ख़ुशी तो हुई पर ये शिकार सिंध के नबाब का है। उसे पता चला तो नाराज होगा। और दुसरे ही दिन नबाब के सिपाही आ गए और नबाब का हुक्म सुनाया कि शेर मारने वाला नबाब के सामने हाजिर हो।
भीमजी जखड़ा को लेकर नबाब के डेरे में हाजिर हुआ। नबाब ने डांटते हुए पूछा -शेर किसने मारा ?
मैंने। जखड़ा ने बिना हिचकिचाए दृढ़ता के साथ जबाब दिया।
क्यों ? नबाब ने पूछा।
गाय को मार दिया और बस्ती के पास आ गया था तो क्या उसे नुक्सान पहुँचने देता ? जखड़ा ने पलट कर जबाब दिया।
दस साल के बच्चे में ऐसी निडरता,दृढ़ता व वीरता देख नबाब भौंचक रह गया,उसने बच्चे को देखा, फिर उसके बाप भीमजी को देखा, और सोचा इसका बाप भी डीलडोल में बड़ा सजीला है,पर इस लड़के की तो बात ही अलग है। बच्चे हमेशा अपने मां बाप पर जाते है शायद ये लड़का अपनी मां पर गया हो। मुझे इसकी मां को देखना चाहिए। एसा वीर पुत्र पैदा करने वाली मां भी कोई ख़ास ही होगी। सो नबाब भीमजी से बोला -
"भीमजी, मुझे वह भूमि दिखाओ जिसने इसे पैदा किया है। हमें वह खेत देखने की जिज्ञासा हो उठी जहाँ ये पैदा हुआ सो घर जाओ और जखड़ा का खेत लेकर आओ।"
घर आये भीमजी को उदास देख पिउसिंध ने कारण पूछा तो भीमजी ने सब बताते हुए कहा- नबाब ने जिद पकड़ ली है कि जखड़ा को जिस भूमि ने पैदा किया वह दिखाओ अब अपनी पत्नी को नबाब के आगे ले जाकर अपने खानदान पर कलंक कैसे लगाऊं ?
पिउसिंध सब समझ गयी थी उसने भीमजी को उस दिन बड़े प्यार से खूब शराब पिलाई और उसके बेहोश होते ही अपने पुराने मर्दाना कपडे पहन घोड़े पर सवार हो नबाब के डेरे पर पहुँच नबाब को सन्देश भिजवाया कि-" कांगड़ा बिलोच का बेटा शिकारखां आया है और आपसे मिलना चाहता है।
नबाब के बुलाने पर पिउसिंध ने अपना परिचय दिया - "हुजुर मैं शिकारखां ! सुना है हुजुर को शिकार का बहुत शौक है। सो शिकार पर चले कुछ देखे,दिखाएँ,शिकार करें और कराएं।
शिकार का शौक़ीन नबाब तुरंत उसके साथ चल दिया। पिउसिंध जिधर निकल जाय उधर शिकार ढेर लग जाये,उसका अचूक निशाना देख नबाब हैरान। उसके तीर का प्रहार देख नबाब चकित। बस उसके मुंह से तो बार बार सिर्फ यही निकले - वाह वाह ! शाबास शिकारखां शाबास ! "
शाम होते ही शिकारखां बनी पिउसिंध ने जाने की इजाजत ली -हुजुर माफ़ी बख्शे आज रुक नहीं सकता फिर कभी हाजिर होवुंगा। अभी जाने की इजाजत दें।
नबाब खुश था उसने जाने की इजाजत के साथ तोहफे में सिरोपाव भी दिया। जिसे लेकर पिउसिंध घोड़े पर सवार हो घर आ गयी।
तीसरे दिन नबाब के सैनिक आ गए। कहने लगे भीमजी चलो नबाब ने आपको याद किया है। सुनकर भीमजी के तेवर चढ़ गए।
पिउसिंध ने भीमजी को अलग लेकर शिकार वाली पूरी बात बताई और कहा ये सिरोपाव नबाब के समक्ष रख देना वह समझ जायेगा।
भीमजी को अकेले आये देख नबाब गुस्से में आँखे निकलता हुआ बोला - अकेले आये हो ? मैंने जिसे दिखाने को कहा था उसे साथ क्यों नहीं लाये ?
" वह तो आपकी नजर गुजारिश हो चुकी है " भीमजी ने हँसते हुए जबाब दिया।
गुस्से में नबाब बोला- भीमजी तमीज से बात करो आप सिंध के नबाब से बात कर रहे है।
"मैं तो पूरी तमीज से ही बात करा हूँ नबाब साहब ! ये सिरोपाव देख लीजिये। शिकारखां ने भेजा।
अब तो नबाब सब समझ गया और अचम्भे में फटते हुए उसके मुंह से सिर्फ "ऐ ??" ही निकला।
" वाह रे शिकारखां,वाह ! माता हो तो ऐसी ही हो,ऐसी माता ही ऐसे सपूतों को जन्म दे सकती है। और गर्दन हिलाकर नबाब ने एक दोहा बोला-
भूमि परक्खो हे नरां, कांई परक्खो विन्द।
भूमि बिना भला न नीपजै,कण,तृण,तुरी नरिन्द।।
भूमि की श्रेष्ठता पहले है,बीज की बाद में। श्रेष्ठ भूमि से ही श्रेष्ठतम कृषि,पेड़-पौधे,घोड़े और नर उत्पन्न होते है।
लड़का होता तो बदला लेता पर सरदार कांगड़ा के एक औलाद थी वो भी एक पन्द्रह वर्ष की लड़की " पिउसिंध "। पिउसिंध अपने बाप की मानसिक पीड़ा समझ रही थी उससे अपने बाप की आँखों में टपक रही घोर निराशा देखी ना जा रही थी सो उसने अपने बाप से कहा - "कि आप मुझे पुत्र से कम ना समझे,मैं आपको वचन देती हूँ कि शिकारपुर के पठानों से आपके अपमान का बदला लुंगी और आपकी लुटी गई घोड़ियाँ वापस लाऊंगी।"
बूढ़े बाप के कानों में बेटी के वीरतापूर्ण वचन सुन अमृत सा बरसा। " तो ला पंजा दे।" उसने खाट पड़े पड़े अपना हाथ पसारा।
पिउसिंध ने हाथ पर हाथ रखकर उसके अपमान का बदला लेने का वचन दिया तो कांगड़ा सरदार के प्राण संतोष के साथ निकल गए।
पिता की मृत्यु के बाद पिउसिंध ने अपने कंधो पर लटकते बालों का जुड़ा बाँधा,मर्दानी पौशाक धारण की,हाथ में तीरकमान लिए और घोड़े पर सवार हो बिलोच जवानों के साथ शस्त्र विधा का अभ्यास करना शुरू कर दिया। दूर दूर तक घुड़सवारी करना,कमान पर तीर चढ़ा निशाने साधना उसकी दैनिक दिनचर्या का अंग बन गया। शस्त्र विधा के अभ्यास व पिता को दिए वचन को पूरा करने की धुन में वह भूल ही गयी कि वह सोलह वर्ष की एक सुंदरी है वह तो अपने आप को बिलोच सरदार का बेटा ही समझने लगी।
बिलोच सैनिक पौशाक पहने,तीर कमान हाथ में लिए जब वह घोड़े पर बैठे निकलती तो देखने वालों की नजरे ही ठिठक जाती अधेड़ औरतों के मन में अभिलाषा जागती काश उनका बेटा भी उसकी तरह हो। कुंवारी लड़कियां पति के काल्पनिक चित्र में उसका रंग घोलने लगती। तीर चलाने की विद्या में तो वह इतनी पारंगत हो गयी कि किसी धुरंधर तीरंदाज का छोड़ा तीर पांच सौ कदम जाता तो उसका छोड़ा तीर सीधा हजार कदम जाकर सटीक निशाने पर लगता।
एक दिन घोड़ा दौड़ाती वह काफी दूर निकल गयी थी और थक हार कर एक तालाब के किनारे अपना घोड़ा बांध विश्राम कर रही थी तभी वहां पाटन गांव का रहने वाला भीमजी भाटी अपने साथियों सहित तालाब पर अपने घोड़ों को पानी पिलाने आया उसने देखा एक खुबसूरत नौजवान तालाब पर बैठा विश्राम कर रहा है। भीमजी भाटी ने अपना परिचय देते हुए उस युवक से परिचय पूछा।
युवक ने कहा- "वह बिलोच सरदार कांगड़ा का बेटा है।" पर आपतो सिंध की और के रहने वाले है ,कहो इधर कैसे आना हुआ ?
भीमजी ने बताया - शिकारपुर के पठानों के पास सुना है बहुत अच्छी घोड़ियाँ है सो वहीँ उन्हें लेने जा रहे है।
युवक बोला - शिकारपुर जाने के इरादे से ही हम आये है। हमने भी पठानों की घोड़ियाँ की बड़ी प्रसंसा सुनी है।
भीमजी ने कहा- मेरे साथ पचास घुड़सवार है आपके साथ ?
युवक मुस्कराते हुए बोला -
" कंथा रण में जायके,कोई जांवे छै साथ।
साथी थारा तीन है,हियो कटारी हाथ।।"
रण में तीन ही साथी होते है। साहस,शस्त्र और बाहुबल। ठाकुर ! मेरे तो बस ये ही तीन साथी है।
भीमजी युवक व अपने दल सहित शिकारपुर के पास पहुंचा। भीमजी के एक टोह लेने गए आदमी ने बताया कि पठानों की घोड़ियाँ को कुछ चरवाह चरा रहे है और यही मौका उन्हें लुटने का। मौका देख उन्होंने घोड़ियाँ लुट ली जिनकी संख्या बहुत थी।
शिकारपुर घोड़ियों की लुट का पता चलते ही पठान तीर कमान ले अपने घोड़ों पर सवार हो पीछा करने लगे। उनके घोड़ों के टापों से उड़ती खेह देख युवक बोला पठान आ रहे है घोड़ियाँ बहुत है इन्हें ले जाने का एक काम आप करो और पठानों को रोकने का दूसरा काम मैं करता हूँ।
भीमजी के आदमी घोड़ियों को तेज भागते ले जाने लगे और युवक ने एक ऊँचे टिबे पर चढ़कर पठानों को रोकने के लिए मोर्चा लिया और अपने घातक तीरों के प्रहार से कई पठानों को धराशायी कर दिया बाकी पठान उसके तीरों के घातक प्रहारों से डर भाग खड़े हुए। घोड़ियाँ के पैरों के निशान देखते देखते युवक पीछा करता हुआ भीमजी भाटी के पास पहुंचा और अपने हिस्से की आधी घोड़ियाँ मांगी।
पर भीमजी के साथियों ने बखेड़ा खड़ा किया। आधी कैसे दे दें ? तुम एक और हम इतने सारे !!
युवक ने कहा - आधी क्यों नहीं ? आधा काम तुम सबने मिलकर किया और आधा मैंने अकेले ने। तुमने घोड़ियाँ घेरी, मैंने पठानों को रोका।
भीमजी के आदमियों ने ना नुकर करने पर युवक ने कमान पर तीर चढ़ाया और कहा -फिर हो जाय फैसला, जो होगा सो देखा जायेगा।
भीमजी के साथी उसके तेवर देख हक्के बक्के रह गए आखिर भीमजी ने बीच बचाव कर घोड़ियों को दो हिस्सों में बाँट दिया पर एक घोड़ा अधिक रह गया,भीमजी के साथियों ने फिर झगडा किया कि यह घोड़ा तो हम रखेंगे पर देखते ही देखते युवक ने तलवार के एक वार से घोड़े के दो टुकड़े कर दिए कि अब ले लो अपना आधा हिस्सा।
अपने हिस्से की घोड़ियों को लेकर युवक कुछ सौ कदम ही जाकर वापस आया और भीमजी से कहने लगा - भीमजी मेरे हिस्से की घोड़ियाँ भी आप रखलो। मैं इन्हें ले जाकर क्या करूँगा ? वो तो अपने हक़ का हिस्सा लेना था सो ले लिया। अब सारी घोड़ियाँ आप अपने पास ही रखिये।और अपने हिस्से की घोड़ियाँ भीमजी को दे बिलोच नौजवान अपने घोड़े पर चढ़ वापस रवाना हुआ।
अपने हिस्से की घोड़ियाँ भीमजी को दे बिलोच युवक ने अपने घोड़े को एड लगाईं और हवा से बाते करना लगा। भीमजी ने अपने साथियों को समझाया तुमने उस युवक से झगड़ा कर ठीक नहीं किया तुम्हारे झगड़े के चलते हमने एक बहादुर दोस्त खो दिया। अब तुम घोड़ियाँ लेकर चलो मैं उसे मनाकर वापस लाता हूँ।
भीमजी उसे खोजते हुए चल पड़े,उन्हें रास्ते में एक बावड़ी के पास युवक का घोड़ा बंधा दिखाई दिया,भीमजी ने बावड़ी के पास जाकर अन्दर झाँका तो वे दंग रह गए उनकी साँसे रुक गई। बावड़ी में एक जवान सुन्दरी अपना बदन मलमल कर स्नान कर रही थी।
आज पिउसिंध एकांत देख वस्त्र उतार नहाने बैठी थी। उसके बाल कमर तक लटक रहे थे उसका गोरा शरीर कुंदन सा दमक रहा था। भीमजी की तो आवाज देने की हिम्मत भी नहीं पड़ी। वे वापस मुड़कर कुछ सौ कदम गए और फिर खांसते खांसते बावड़ी के पास तक आये, थोड़ी देर में पिउसिंध नहाने के बाद कपडे पहन हाथों में तीर कमान नचाती बाहर निकली।
भीमजी आँखों में रंग भर,मुस्कराहट बिखेरते बोला- नाराज हो गए ? अब घोड़ियाँ हाजिर और मैं भी हाजिर। चलो मेरे साथ मेरे गांव,तुम हुक्म दो हम चाकरी करेंगे। अब तो जीना तुम्हारे साथ मरना तुम्हारे साथ।
पिउसिंध मुस्कराते बोली -" मैं बिलोच मुस्लमान, तुम भाटी राजपूत।"
भीमजी बोला-" जात पात गंवार लोग देखते है। राजपूत की जाति है वीरता। तुम वीर ,मैं वीर सो हमारी जाति एक ही हुई ना। अब तो मंजूर ?
और पिउसिंध ने शरमाते हुए हामी भरदी। भीमजी उसे लेकर अपने गांव पाटन आ गया। दोनों अपना घर बसा चैन से रहने लगे। उनके दो सुन्दर बेटे भी हुए एक का नाम रखा जखड़ा और दुसरे का मुखड़ा। पिउसिंध ने दोनों बेटों को तीर कमान और तलवार चलाने की शिक्षा दी।
एक दिन एक गांव में एक दौड़कर आते ग्वाले ने सुचना दी कि " एक शेर गांव की तरफ आ गया और एक गाय को उसने मार गिराया।" सुनकर जखड़ा व मुखड़ा दोनों भाई उस और भागे। शेर ने देखते ही उन पर हमला किया पर जखड़ा ने तलवार के एक ही वार शेर को ढेर कर दिया। और दोनों भाई शेर की पूंछ पकड़ घसीटते हुए गांव में ले आये। भीमजी पुत्रों की बहादुरी देख खुश होते बोला- ख़ुशी तो हुई पर ये शिकार सिंध के नबाब का है। उसे पता चला तो नाराज होगा। और दुसरे ही दिन नबाब के सिपाही आ गए और नबाब का हुक्म सुनाया कि शेर मारने वाला नबाब के सामने हाजिर हो।
भीमजी जखड़ा को लेकर नबाब के डेरे में हाजिर हुआ। नबाब ने डांटते हुए पूछा -शेर किसने मारा ?
मैंने। जखड़ा ने बिना हिचकिचाए दृढ़ता के साथ जबाब दिया।
क्यों ? नबाब ने पूछा।
गाय को मार दिया और बस्ती के पास आ गया था तो क्या उसे नुक्सान पहुँचने देता ? जखड़ा ने पलट कर जबाब दिया।
दस साल के बच्चे में ऐसी निडरता,दृढ़ता व वीरता देख नबाब भौंचक रह गया,उसने बच्चे को देखा, फिर उसके बाप भीमजी को देखा, और सोचा इसका बाप भी डीलडोल में बड़ा सजीला है,पर इस लड़के की तो बात ही अलग है। बच्चे हमेशा अपने मां बाप पर जाते है शायद ये लड़का अपनी मां पर गया हो। मुझे इसकी मां को देखना चाहिए। एसा वीर पुत्र पैदा करने वाली मां भी कोई ख़ास ही होगी। सो नबाब भीमजी से बोला -
"भीमजी, मुझे वह भूमि दिखाओ जिसने इसे पैदा किया है। हमें वह खेत देखने की जिज्ञासा हो उठी जहाँ ये पैदा हुआ सो घर जाओ और जखड़ा का खेत लेकर आओ।"
घर आये भीमजी को उदास देख पिउसिंध ने कारण पूछा तो भीमजी ने सब बताते हुए कहा- नबाब ने जिद पकड़ ली है कि जखड़ा को जिस भूमि ने पैदा किया वह दिखाओ अब अपनी पत्नी को नबाब के आगे ले जाकर अपने खानदान पर कलंक कैसे लगाऊं ?
पिउसिंध सब समझ गयी थी उसने भीमजी को उस दिन बड़े प्यार से खूब शराब पिलाई और उसके बेहोश होते ही अपने पुराने मर्दाना कपडे पहन घोड़े पर सवार हो नबाब के डेरे पर पहुँच नबाब को सन्देश भिजवाया कि-" कांगड़ा बिलोच का बेटा शिकारखां आया है और आपसे मिलना चाहता है।
नबाब के बुलाने पर पिउसिंध ने अपना परिचय दिया - "हुजुर मैं शिकारखां ! सुना है हुजुर को शिकार का बहुत शौक है। सो शिकार पर चले कुछ देखे,दिखाएँ,शिकार करें और कराएं।
शिकार का शौक़ीन नबाब तुरंत उसके साथ चल दिया। पिउसिंध जिधर निकल जाय उधर शिकार ढेर लग जाये,उसका अचूक निशाना देख नबाब हैरान। उसके तीर का प्रहार देख नबाब चकित। बस उसके मुंह से तो बार बार सिर्फ यही निकले - वाह वाह ! शाबास शिकारखां शाबास ! "
शाम होते ही शिकारखां बनी पिउसिंध ने जाने की इजाजत ली -हुजुर माफ़ी बख्शे आज रुक नहीं सकता फिर कभी हाजिर होवुंगा। अभी जाने की इजाजत दें।
नबाब खुश था उसने जाने की इजाजत के साथ तोहफे में सिरोपाव भी दिया। जिसे लेकर पिउसिंध घोड़े पर सवार हो घर आ गयी।
तीसरे दिन नबाब के सैनिक आ गए। कहने लगे भीमजी चलो नबाब ने आपको याद किया है। सुनकर भीमजी के तेवर चढ़ गए।
पिउसिंध ने भीमजी को अलग लेकर शिकार वाली पूरी बात बताई और कहा ये सिरोपाव नबाब के समक्ष रख देना वह समझ जायेगा।
भीमजी को अकेले आये देख नबाब गुस्से में आँखे निकलता हुआ बोला - अकेले आये हो ? मैंने जिसे दिखाने को कहा था उसे साथ क्यों नहीं लाये ?
" वह तो आपकी नजर गुजारिश हो चुकी है " भीमजी ने हँसते हुए जबाब दिया।
गुस्से में नबाब बोला- भीमजी तमीज से बात करो आप सिंध के नबाब से बात कर रहे है।
"मैं तो पूरी तमीज से ही बात करा हूँ नबाब साहब ! ये सिरोपाव देख लीजिये। शिकारखां ने भेजा।
अब तो नबाब सब समझ गया और अचम्भे में फटते हुए उसके मुंह से सिर्फ "ऐ ??" ही निकला।
" वाह रे शिकारखां,वाह ! माता हो तो ऐसी ही हो,ऐसी माता ही ऐसे सपूतों को जन्म दे सकती है। और गर्दन हिलाकर नबाब ने एक दोहा बोला-
भूमि परक्खो हे नरां, कांई परक्खो विन्द।
भूमि बिना भला न नीपजै,कण,तृण,तुरी नरिन्द।।
भूमि की श्रेष्ठता पहले है,बीज की बाद में। श्रेष्ठ भूमि से ही श्रेष्ठतम कृषि,पेड़-पौधे,घोड़े और नर उत्पन्न होते है।