जूनागढ़ किला बीकानेर के सबसे लोकप्रिय आकर्षण के बीच में गिना जाता है। इस किले को वास्तव में चिंतामणि किले और बीकानेर किले को Bikaner Fort के नाम से जाना जाता है। यह किला राजस्थान के उन प्रमुख किलो में शामिल है जो पहाड़ की ऊंचाई पर नही बने है। वर्तमान बीकानेर शहर किले के आस-पास ही विकसित हुआ है।


जूनागढ़ किले का इतिहास 

किले का निर्माण बीकानेर के शासक राजा राय सिंह के प्रधान मंत्री करण चंद की निगरानी में किया गया था, राजा राय सिंह ने 1571 से 1611 AD के बीच बीकानेर पर शासन किया था।

किले की दीवारों और खाई का निर्माणकार्य 1589 में शुरू हुआ था और 1594 में पूरा हुआ था। इन्हें शहर के वास्तविक किले के बाहर ही बनाया गया है, सिटी सेंटर से 1.5 किलोमीटर की दुरी पर इन दीवारों और खाई का निर्माण किया गया था। जूनागढ़ किले के शेष भाग लक्ष्मी नारायण मंदिर के आस-पास बने हुए है।


जूनागढ़ के प्राचीन शहर का नामकरण एक पुराने दुर्ग के नाम पर हुआ है। यह गिरनार पर्वत के समीप स्थित है। यहाँ पूर्व-हड़प्पा काल के स्थलों की खुदाई हुई है। इस शहर का निर्माण नौवीं शताब्दी में हुआ था।

यह चूड़ासमा राजपूतों की राजधानी थी। यह एक रियासत थी। गिरनार के रास्ते में एक गहरे रंग की बेसाल्ट चट्टान है, जिस पर तीन राजवंशों का प्रतिनिधित्व करने वाला शिलालेख अंकित है।

मौर्य शासक अशोक (लगभग 260-238 ई.पू.) रुद्रदामन (150 ई.) और स्कंदगुप्त (लगभग 455-467)। यहाँ 100-700 ई. के दौरान बौद्धों द्वारा बनाई गई गुफ़ाओं के साथ एक स्तूप भी है। शहर के निकट स्थित कई मंदिर और मस्जिदें इसके लंबे और जटिल इतिहास को उद्घाटित करते हैं।


यहाँ तीसरी शताब्दी ई.पू. की बौद्ध गुफ़ाएँ, पत्थर पर उत्कीर्णित सम्राट अशोक का आदेशपत्र और गिरनार पहाड़ की चोटियों पर कहीं-कहीं जैन मंदिर स्थित हैं। 15वीं शताब्दी तक राजपूतों का गढ़ रहे जूनागढ़ पर 1472 में गुजरात के महमूद बेगढ़ा ने क़ब्ज़ा कर लिया, जिन्होंने इसे मुस्तफ़ाबाद नाम दिया और यहाँ एक मस्जिद बनवाई, जो अब खंडहर हो चुकी है।

इतिहासिक दस्तावेजो के अनुसार Junagarh Fort पर कई बार दुश्मनों ने आक्रमण किया गया था, लेकिन कभी इसे कोई हासिल नही कर सका सिर्फ कामरान मिर्ज़ा ने ही एक दिन के लिये इसे अपने नियंत्रण में रखा था।

कामरान मुग़ल बादशाह बाबर के दुसरे बेटे थे जिन्होंने 1534 में बीकानेर पर आक्रमण किया था, और इसके बाद बीकानेर पर राव जित सिंह का शासन था।

कहा जाता है कि मुगल शासक कामरान जूनागढ़ की गद्दी हथियाने और किले पर फतह करने में कामयाब हो गया था, लेकिन 24 घंटे के अंदर ही उसे सिंहासन छोड़ना पड़ा। इसके अलावा कहीं कोई उल्लेख नहीं मिलता कि जूनागढ़ को किसी शासक ने फतेह करने के मंसूबे बनाए हों और वह कामयाब हुआ हो।

जूनागढ़ किले की वास्तुकला

यहां के कुछ महलों में ‘बादल महल’ सहित गंगा महल, फूल महल आदि शामिल हैं। इस किले में एक संग्रहालय भी है जिसमें ऐतिहासिक महत्व के कपड़े, चित्र और हथियार भी हैं। यह संग्रहालय सैलानियों के लिए राजस्थान के खास आकर्षणों में से एक है।

यहां आपको संस्कृत और फारसी में लिखी गई कई पांडुलिपियां भी मिल जाएंगी। जूनागढ़ किले के अंदर बना संग्रहालय बीकानेर और राजस्थान में सैलानियों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण है। इस किला संग्रहालय में कुछ बहुत ही दुर्लभ चित्र, गहने, हथियार, पहले विश्वयुद्ध के बाइप्लेन आदि हैं।


दुर्ग चतुष्कोणीय आकार में है, जो 1078 गज की परिधि में निर्मित है तथा इसमें औसतन 40 फीट ऊंचाई तक के 37 बुर्ज हैं, जो चारों तरफ से दीवार से घिरे हुए हैं। इस दुर्ग के 2 प्रवेश द्वार हैं- करण प्रोल व चांद प्रोल। करण प्रोल पूर्व दिशा में बनी है जिसमें 4 द्वार हैं तथा चांद प्रोल पश्चिम दिशा में बनी है, जो एक मात्र द्वार ध्रुव प्रोल से संरक्षित है।

सभी प्रोलों का नामकरण बीकानेर के शाही परिवार के प्रमुख शासकों एवं राजकुमारों के नाम पर किया गया है। इनमें से कई प्रोल ऐसी हैं, जो दुर्ग को संरक्षित करती हैं। पुराने जमाने में कोई भी युद्घ तब तक जीता हुआ नहीं माना जाता था, जब तक कि वहां के दुर्ग पर विजय प्राप्त न कर ली जाती।

शत्रुओं को गहरी खाई को पार करना पड़ता था, उसके बाद मजबूत दीवारों को पार करना होता था, तब कहीं जाकर दुर्ग में प्रवेश करने के लिए प्रोलों को अपने कब्जे में लेना होता था। प्रोलों के दरवाजे बहुत ही भारी व मजबूत लकड़ी के बने हुए हैं। इसमें ठोस लोहे की भालेनुमा कीलें लगी हुई हैं।


किले की खिड़कियाँ रंगीन कांच की बनी हुई है और जटिलतापूर्वक चित्रित की हुई बाल्कनी का निर्माण लकडियो से किया गया है. बाद में राजस, अनूप सिंह और सूरत सिंह ने भी महल की मरम्मत करवाकर इसे चमकीला बनवाया, कांच लगवाए और लाल और सुनहरा पेंट भी लगवाया।

बादल महल, अनूप महल के अस्तित्व का ही एक भाग है. इसमें शेखावती दुन्द्लोद की पेंटिंग है जो बीकानेर के महाराजा को अलग-अलग पगड़ियो में सम्मान दे रहे है। इसमें नाख़ून, लकड़ी, तलवार और आरे पर खड़े लोगो की तस्वीरे भी लगी हुई है। महल की दीवारों पर हिन्दू भगवान श्री क्रिष्ण की तस्वीरे भी बनी हुई है।

चन्द्र महल किले का सबसे भव्य और शानदार कमरा है, सोने से बने देवी-देवताओ की कलाकृतियाँ और पेंटिंग लगी हुई है जिनमे बहुमूल्य रत्न भी जड़े हुए है। इस शाही बेडरूम में कांच को इस तरह से लगाया गया है की राजा अपने पलंग पर बैठे ही जो कोई भी उनके कमरे में प्रवेश कर रहा है उसे देख सकते है।