लवर किला एक बड़ा किला है और इसे 'बाला किला' भी कहा जाता है जिसका अर्थ 'नया किला' है। 300 मीटर्स की खड़ी चट्टानों के शीर्ष पर स्थित अलवर किले से आप अलवर सहर का सुन्दर नजारा भी देख सकते है । यह किला 1550 में हसन खान मेवाती द्वारा बनाया गया है।

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अलवर किला 5 किमी लंबी और 1.5 किमी चौड़ी है और छह ऐतिहासिक प्रवेश द्वार हैं- चंद पोल, सूरराज पाल (भरतपुर के राजा सूरज मॉल के नाम पर), जय पोल, किशन पोल, अंधेरी गे और लक्ष्मण पोल किंवदंतियों का कहना है कि अलवर राज्य के संस्थापक प्रताप सिंह ने लक्ष्मण पोल के माध्यम से किले में प्रवेश किया था। लक्ष्मण पोल एकमात्र गद्देदार सड़क है जो शहर और किले को जोड़ता है।

अलवर किले का इतिहास

हसन खान मेवाती ने 1551 ईस्वी में अलवर किले का निर्माण किया था । इसके बाद, अलवर किला पर मुगलों, मराठों और जाटों ने शाशन किया था। अंत में 1775 में कच्छवाहा राजपूत प्रताप सिंह ने इस किले पर कब्जा कर लिया और इसके निकट अलवर शहर की नींव रखी। बाबर, मुग़ल सम्राट ने किले में एक रात बिताई थी जबकि जहांगीर निर्वासन अवधि के दौरान तीन साल तक रहे और उस समय उन्होंने इसे सलीम महल के रूप में नामित किया।

अलवर किले की वास्तुकला

अलवर किला राजस्थान में सबसे बड़े किलों में गिने जाते हैं, जो कि 5 किलोमीटर की दूरी तक फैली हुई है। किले में 6 प्रवेश द्वार हैं और पोल के नाम से जाना जाता है। किले के 6 द्वार चांद पोल, सूरज पोल, कृष्ण पोल, लक्ष्मण पोल, अंधेरी गेट और जय पोल हैं। इन गेटों में से प्रत्येक का नाम कुछ शासकों के नाम पर रखा गया है और उनकी शिष्टता बताई गई है।

किले कई शैलियों में बनाया गया है और किले की दीवारों में सुंदर शास्त्र और मूर्तियां बनाई गई हैं।। इन सुंदर नक्काशीयों के अलावा किले में सूरज कुड, सलीम नगर तलाव, जल महल और निकुंभ महल पैलेस जैसे अन्य उल्लेखनीय इमारतों भी शामिल है। किले के परिसर में कई मंदिर भी हैं।

अलवर किले की खासियत

ये माना जाता है कि इस किले का निर्माण 1492 में हसन खान मेवाती ने शुरू करवाया था।
1775 में इस किले पर माहाराव राजा प्रताप सिंह का राज था, जिन्होंने अलवर की स्थापना की।
पहाड़ पर बना ये किला उत्तर से दक्षिण दिशा में करीब 5 किलोमीटर तक फैला है। वहीं, पूर्व से पश्चिम में इसकी लंबाई 1.6 किलोमीटर की है।
किले में आने जाने के लिए कुल 6 दरवाजे थे। जिनके नाम जय पोल, सूरज पोल, लक्ष्मण पोल, चांद पोल, किशन पोल और अंधेरी पोल थे।

एक दिन बाबर ने भी बिताया

यह किला अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। अंदर से कई भागों में बंटा हुआ है। एक जगह से दूसरी जगह पहुंचने के लिए कई तरफ से सीढ़ियां हैं।

किले के जिस कमरे में जहांगीर ठहरा था, उसे सलीम महल के नाम से जाना जाता है। इस किले में एक दिन बाबर ने भी बिताया था।

खास बातें

बाला किला से शहर का भव्य रूप नजर आता है। समुद्र तल से ऊंचाई 1960 फुट है। यह 8 किलोमीटर की परिधि में फैला हुआ है। दुश्मन पर गोलियां बरसाने के लिए खास तौर से इसे तैयार किया गया था।

दुश्मन पर बंदूकें चलाने के लिए किले की दीवारों में करीब 500 छेद हैं, जिनमें से 10 फुट की बंदूक से भी गोली चलाई जा सकती थी।

दुश्मनों पर नजर रखने के लिए 15 बड़े 51 छोटे बुर्ज और 3359 कंगूरे हैं। इस किले पर निकुंभ, खान जादा, मुगलों, मराठों, जाटों राजपूतों का शासन रहा।

किले में एक मंदिर

बाला किला क्षेत्र में कुंभ निकुंभों की कुलदेवी, करणी माता मंदिर, तोप वाले हनुमान जी, चक्रधारी हनुमान मंदिर, सीताराम मंदिर सहित अन्य मंदिर, जय आश्रम, सलीम सागर, सलीम बारादरी स्थित हैं। मंगलवार शनिवार को मंदिर जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए प्रवेश निशुल्क है।

सरिस्का क्षेत्र में आने के कारण वन विभाग की ओर से दुपहिया और चौपहिया वाहनों के लिए रेट निर्धारित है, जबकि बाला किला में प्रवेश निशुल्क है।