राजस्थान का करनी माता या चूहा मंदिर बीकानेर शहर से 30 किमी की दूरी पर स्थित है जो अपने समय की प्रसिद्ध रहस्यवादी देवी करनी माता को समर्पित है, जो देवी दुर्गा का अवतार है। मंदिर का निर्माण मुगल शैली द्वारा बनाया गया है,जिसकी शरुआत 20 वीं सदी में महाराजा गंगा सिंह ने की थी। इसके बाद इसे 1999 में हैदराबाद स्थित करनी ज्वेलर्स के कुंदनलाल वर्मा द्वारा सुशोभित किया गया। मंदिर के चांदी के दरवाजे और नक्काशीदार संगमरमर भी उन्ही के द्वारा दान में दी गयी थी ।
करणी माता मंदिर का इतिहास
करनी माता मंदिर को चूहा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है और इसका नाम एक महिला के नाम पर रखा गया है, जो मेहोजी चरण और देवल देवी की सातवीं बेटी थी जिसका जन्म 14 वीं शताब्दी में राजस्थान के जोधपुर जिले के सुवप गांव में हुआ था। वह शक्ति और विजय की देवी दुर्गा का अवतार थी।
करणी माता एक हिन्दू महिला ज्ञानी थी जिसका जन्म चरण जाती में हुआ था। लोग उसे हिन्दू देवी दुर्गा का रूप मानते थे। वह जोधपुर और बीकानेर के शाही परिवार की देवी थी। एक तपस्वी बनकर उन्होंने अपना जीवन व्यतीत किया था और उस समय में लोग उनका बहुत आदर और सम्मान भी करते थे। बीकानेर के महाराजा की प्रार्थना पर ही उन्होंने उनके राज्य के दो महत्वपूर्ण किलो की नीव रखी थी।
राजस्थान में बीकानेर के पास उनके नाम का एक छोटा सा मंदिर भी है और यह मंदिर उनके घर से ओझल हो जाने के बाद ही बनवाया गया था। करणी माता मंदिर / Karni Mata Temple Of Rats सफ़ेद चूहों के लिये भी प्रसिद्ध है, सफ़ेद चूहों को वहा के लोग पवित्र मानते है और कहा जाता है की वे मंदिर की सुरक्षा करते है। इसके विपरीत इस मंदिर का जैन धर्म से कोई संबंध नही है। उनके महान कार्यो को देखते हुए उन्हें समर्पित करते हुए एक और मंदिर का निर्माण करवाया गया था
लेकिन दुसरे मंदिर को इतनी प्रसिद्धि नही मिल सकी, लेकिन दुसरे मंदिर में हमें करणी माता के पद चिन्ह जरुर दिखाई देते है। करणी माता को नारी बाई के नाम से भी जाना जाता था।
करणी देवी एक योगियों और ज्ञानियों की तरह अपनी बची हुई जिंदगी को व्यतीत करना चाहती थी। इसलिये उन्होंने गाव के बाहर ही जंगल में अपना एक टेंट डाला लेकिन उस जगह के शासक के नौकर ने उन्हें पानी देने से मना कर दिया था। लेकिन वहा अनेक श्रद्धालुओं का मानना था कि करणी देवी साक्षात मां जगदम्बा की अवतार थीं। अब से लगभग साढ़े छह सौ वर्ष पूर्व जिस स्थान पर यह भव्य मंदिर है।
वहां एक गुफा में रहकर मां अपने इष्ट देव की पूजा अर्चना किया करती थीं। यह गुफा आज भी मंदिर परिसर में स्थित है।
मां के ज्योर्तिलीन होने पर उनकी इच्छानुसार उनकी मूर्ति की इस गुफा में स्थापना की गई। बताते हैं कि मां करणी के आशीर्वाद से ही बीकानेर और जोधपुर राज्य की स्थापना हुई थी। मां के अनुयायी केवल राजस्थान में ही नहीं, देशभर में हैं, जो समय-समय पर यहां दर्शनों के लिए आते रहते हैं।
संगमरमर से बने मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है।
मुख्य दरवाजा पार कर मंदिर के अंदर पहुंचे। वहां जैसे ही दूसरा गेट पार किया, तो चूहों की धमाचौकड़ी देख मन दंग रह गया। चूहों की बहुतायत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पैदल चलने के लिए अपना अगला कदम उठाकर नहीं, बल्कि जमीन पर घसीटते हुए आगे रखना होता है। लोग इसी तरह कदमों को घसीटते हुए करणी मां की मूर्ति के सामने पहुंचते हैं। चूहे पूरे मंदिर प्रांगण में मौजूद रहते है। वे श्रद्धालुओं के शरीर पर कूद-फांद करते हैं, लेकिन किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते।
चील, गिद्ध और दूसरे जानवरों से इन चूहों की रक्षा के लिए मंदिर में खुले स्थानों पर बारीक जाली लगी हुई है। इन चूहों की उपस्थिति की वजह से ही श्री करणी देवी का यह मंदिर चूहों वाले मंदिर के नाम से भी विख्यात है। ऐसी मान्यता है कि किसी श्रद्धालु को यदि यहां सफेद चूहे के दर्शन होते हैं, तो इसे बहुत शुभ माना जाता है। सुबह पांच बजे मंगला आरती और सायं सात बजे आरती के समय चूहों का जुलूस तो देखने लायक होता है।
करणी मां की कथा एक सामान्य ग्रामीण कन्या की कथा है, लेकिन उनके संबंध में अनेक चमत्कारी घटनाएं भी जुड़ी बताई जाती हैं, जो उनकी उम्र के अलग-अलग पड़ाव से संबंध रखती हैं। बताते हैं कि संवत 1595 की चैत्र शुक्ल नवमी गुरुवार को श्री करणी ज्योर्तिलीन हुईं। संवत 1595 की चैत्र शुक्ला 14 से यहां श्री करणी माता जी की सेवा पूजा होती चली आ रही है। मंदिर के मुख्य द्वार पर संगमरमर पर नक्काशी को भी विशेष रूप से देखने के लिए लोग यहां आते हैं। चांदी के किवाड़, सोने के छत्र और चूहों (काबा) के प्रसाद के लिए यहां रखी चांदी की बड़ी परात भी देखने लायक है।
करणी माता के मंदिर को चूहों का मंदिर भी कहा जाता है। क्योकि यहाँ काफी मात्रा में हमें सफ़ेद चूहे दिखाई देते है। यदि गलती से किसी चूहे की मृत्यु हो जाती है उसी जगह पर एक चाँदी का चूहा बनाकर रख दिया जाता है, कहा जाता है की यहाँ तक़रीबन 20000 चूहे रहते है। अपने महान ऐतिहासिक महत्व के साथ साथ यह सुंदर वास्तुकला से बना मंदिर कई पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
करणी माता – राजस्थान का चूहा मंदिर
इस मंदिर में चूहें निडर होकर भक्तो के चारो और घूमते है | माना जाता है कि मृत चरणों (पारंपरिक मंडल, माता के भक्त) की आत्मा इन चूहों में रहती हैं। इस मंदिर में चूहा दिखना बहुत भाग्यशाली माना जाता है। आरती के समय, इन चूहों को भक्तों द्वारा मिठाई, अनाज आदि खिलाई जाती है। मंदिर में हजारों काले चूहों के अलावा, यहाँ कुछ सफेद चूहें भी हैं, जिन्हें विशेष रूप से पवित्र माना जाता है।
माना जाता है कि वे करनी माता की खुद की और उसके चार बेटों की अभिव्यक्तियां हैं। उनका दिखना एक विशेष आशीर्वाद माना जाता है जिन्हें देखने के लिए भक्त कई प्रयास करते है | और उन्हें प्रसाद के रूप में मिठाई खिलते है | इन चूहों को कबास भी कहा जाता है ये भक्तों को परेशान किए बिना मंदिर में घूमते रहते हैं और ये भक्तो की गोद में, कंधों पर, हाथों और सिर पर बैठते हैं जिसे भक्त देवी माता के आशीर्वाद का रूप मानते है।

करणी माता मंदिर का इतिहास
करनी माता मंदिर को चूहा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है और इसका नाम एक महिला के नाम पर रखा गया है, जो मेहोजी चरण और देवल देवी की सातवीं बेटी थी जिसका जन्म 14 वीं शताब्दी में राजस्थान के जोधपुर जिले के सुवप गांव में हुआ था। वह शक्ति और विजय की देवी दुर्गा का अवतार थी।
करणी माता एक हिन्दू महिला ज्ञानी थी जिसका जन्म चरण जाती में हुआ था। लोग उसे हिन्दू देवी दुर्गा का रूप मानते थे। वह जोधपुर और बीकानेर के शाही परिवार की देवी थी। एक तपस्वी बनकर उन्होंने अपना जीवन व्यतीत किया था और उस समय में लोग उनका बहुत आदर और सम्मान भी करते थे। बीकानेर के महाराजा की प्रार्थना पर ही उन्होंने उनके राज्य के दो महत्वपूर्ण किलो की नीव रखी थी।

राजस्थान में बीकानेर के पास उनके नाम का एक छोटा सा मंदिर भी है और यह मंदिर उनके घर से ओझल हो जाने के बाद ही बनवाया गया था। करणी माता मंदिर / Karni Mata Temple Of Rats सफ़ेद चूहों के लिये भी प्रसिद्ध है, सफ़ेद चूहों को वहा के लोग पवित्र मानते है और कहा जाता है की वे मंदिर की सुरक्षा करते है। इसके विपरीत इस मंदिर का जैन धर्म से कोई संबंध नही है। उनके महान कार्यो को देखते हुए उन्हें समर्पित करते हुए एक और मंदिर का निर्माण करवाया गया था
लेकिन दुसरे मंदिर को इतनी प्रसिद्धि नही मिल सकी, लेकिन दुसरे मंदिर में हमें करणी माता के पद चिन्ह जरुर दिखाई देते है। करणी माता को नारी बाई के नाम से भी जाना जाता था।
करणी देवी एक योगियों और ज्ञानियों की तरह अपनी बची हुई जिंदगी को व्यतीत करना चाहती थी। इसलिये उन्होंने गाव के बाहर ही जंगल में अपना एक टेंट डाला लेकिन उस जगह के शासक के नौकर ने उन्हें पानी देने से मना कर दिया था। लेकिन वहा अनेक श्रद्धालुओं का मानना था कि करणी देवी साक्षात मां जगदम्बा की अवतार थीं। अब से लगभग साढ़े छह सौ वर्ष पूर्व जिस स्थान पर यह भव्य मंदिर है।

मुख्य दरवाजा पार कर मंदिर के अंदर पहुंचे। वहां जैसे ही दूसरा गेट पार किया, तो चूहों की धमाचौकड़ी देख मन दंग रह गया। चूहों की बहुतायत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पैदल चलने के लिए अपना अगला कदम उठाकर नहीं, बल्कि जमीन पर घसीटते हुए आगे रखना होता है। लोग इसी तरह कदमों को घसीटते हुए करणी मां की मूर्ति के सामने पहुंचते हैं। चूहे पूरे मंदिर प्रांगण में मौजूद रहते है। वे श्रद्धालुओं के शरीर पर कूद-फांद करते हैं, लेकिन किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते।
चील, गिद्ध और दूसरे जानवरों से इन चूहों की रक्षा के लिए मंदिर में खुले स्थानों पर बारीक जाली लगी हुई है। इन चूहों की उपस्थिति की वजह से ही श्री करणी देवी का यह मंदिर चूहों वाले मंदिर के नाम से भी विख्यात है। ऐसी मान्यता है कि किसी श्रद्धालु को यदि यहां सफेद चूहे के दर्शन होते हैं, तो इसे बहुत शुभ माना जाता है। सुबह पांच बजे मंगला आरती और सायं सात बजे आरती के समय चूहों का जुलूस तो देखने लायक होता है।
करणी मां की कथा एक सामान्य ग्रामीण कन्या की कथा है, लेकिन उनके संबंध में अनेक चमत्कारी घटनाएं भी जुड़ी बताई जाती हैं, जो उनकी उम्र के अलग-अलग पड़ाव से संबंध रखती हैं। बताते हैं कि संवत 1595 की चैत्र शुक्ल नवमी गुरुवार को श्री करणी ज्योर्तिलीन हुईं। संवत 1595 की चैत्र शुक्ला 14 से यहां श्री करणी माता जी की सेवा पूजा होती चली आ रही है। मंदिर के मुख्य द्वार पर संगमरमर पर नक्काशी को भी विशेष रूप से देखने के लिए लोग यहां आते हैं। चांदी के किवाड़, सोने के छत्र और चूहों (काबा) के प्रसाद के लिए यहां रखी चांदी की बड़ी परात भी देखने लायक है।
करणी माता के मंदिर को चूहों का मंदिर भी कहा जाता है। क्योकि यहाँ काफी मात्रा में हमें सफ़ेद चूहे दिखाई देते है। यदि गलती से किसी चूहे की मृत्यु हो जाती है उसी जगह पर एक चाँदी का चूहा बनाकर रख दिया जाता है, कहा जाता है की यहाँ तक़रीबन 20000 चूहे रहते है। अपने महान ऐतिहासिक महत्व के साथ साथ यह सुंदर वास्तुकला से बना मंदिर कई पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
करणी माता – राजस्थान का चूहा मंदिर
इस मंदिर में चूहें निडर होकर भक्तो के चारो और घूमते है | माना जाता है कि मृत चरणों (पारंपरिक मंडल, माता के भक्त) की आत्मा इन चूहों में रहती हैं। इस मंदिर में चूहा दिखना बहुत भाग्यशाली माना जाता है। आरती के समय, इन चूहों को भक्तों द्वारा मिठाई, अनाज आदि खिलाई जाती है। मंदिर में हजारों काले चूहों के अलावा, यहाँ कुछ सफेद चूहें भी हैं, जिन्हें विशेष रूप से पवित्र माना जाता है।
माना जाता है कि वे करनी माता की खुद की और उसके चार बेटों की अभिव्यक्तियां हैं। उनका दिखना एक विशेष आशीर्वाद माना जाता है जिन्हें देखने के लिए भक्त कई प्रयास करते है | और उन्हें प्रसाद के रूप में मिठाई खिलते है | इन चूहों को कबास भी कहा जाता है ये भक्तों को परेशान किए बिना मंदिर में घूमते रहते हैं और ये भक्तो की गोद में, कंधों पर, हाथों और सिर पर बैठते हैं जिसे भक्त देवी माता के आशीर्वाद का रूप मानते है।