मारवाङ री धरती
मारवाङ री धरा देखी, देख्यौ मैदान दिल्ली रो।
मराठां रा परबत देख्या, देखी धरती निजाम री।
कोई बात अचरज री, ना दिखी हिन्दुस्तान में।
अचरज हुयो म्हानै घणौ, देख धरा राजस्थान री।
भांति भाति गा लोग अठे, बोली न्यारी न्यारी।
न्यारा न्यारा मौसम अठे, फसलां न्यारी न्यारी।
दस कोसां पाणी बदळै, बीस कोसां बोली।
चालीस कोसां राज बदळै, अस्सी कोसां देस।
माणस अठे गा सीधा सादा, भोळा लोग लुगाई।
तकनीक सूँ दूर भाजता, संस्कृति लेर चालता।
किताबी शिक्षा कम मिले, पण जीवन शिक्षा ब्होत मिले।
देश देशांतर घूम लेवो, मारवाङी पावै हर कोने।
– सतवीर वर्मा ‘बिरकाळी’