सुहागरात पर पति से ऐसी रूठी रानी उमादे कि आजीवन बात नहीं की
राजस्थान के राजवंशों के गौरवशाली इतिहास के साथ इनके किस्से भी बड़े रोचक हैं। बात राजा मालदेव की शादी के समय की है। रानी उमादे सुहाग की सेज पर राजा का इंतजार करती रही और वो पहुंचे ही नहीं। रानी ने राजा को बुला लाने के लिए दासी को भेजा। राजा ने दासी को रानी समझ उसे अपने पास बैठा लिया, ये देख रानी गुस्सा हो गई और राजा से जिंदगी भर बात नहीं की। जब राजा रानी को मनाने पहुंचे तो उमादे ने कहा कि अब आप मेरे लायक नहीं रहे। जानें क्या है पूरी कहानी…
पांच सदी पूर्व मारवाड़ में राजा राव मालदेव थे। इनकी एक गलती के कारण उनका नई रानी उनसे सुहागरात पर ही रूठ गई थीं। रानी ने भी ऐसा प्रण लिया कि जीवनभर अपनी बात पर कायम रही और इतिहास में रूठीं रानी के नाम से प्रसिद्ध हो गई। जीवनभर अपने पति से नहीं बोलने वाली रूठी रानी ने मरने के बाद अपने पति का साथ दिया और उसके साथ ही सती हो गई।
कुछ ऐसी है पूरी कहानी
पूरे राजपूताना में आज तक राव मालदेव की टक्कर का अन्य कोई राजपूत शासक नहीं हुआ। जीवन में 52 युद्ध लड़ने वाले इस शूरवीर की शादी 24 वर्ष की आयु में वर्ष 1535 में जैसलमेर की राजकुमारी उमादे के साथ हुआ। उमादे अपनी सुंदरता व चतुरता के लिए प्रसिद्ध थी। राठौड़ राव मालदेव की बरात शाही लवाजमे के साथ जैसलमेर पहुंची। राजकुमारी उमादे राव मालदेव जैसा शूरवीर और महाप्रतापी राजा को पति के रूप में पाकर बहुत खुश थी।
शादी होने के बाद राव मालदेव अपने सरदारों व संबंधियों के साथ महफिल में बैठ गए और रानी उमादे सुहाग की सेज पर उनकी राह देखती-देखती थक गई। इस पर रानी ने दहेज में मिली अपनी खास दासी भारमली को राजा को बुलाने भेजा। दासी भारमली राव मालदेव को बुलाने गई। खूबसूरत दासी को नशे में चूर राव ने रानी समझ कर अपने पास बैठा लिया।
काफी वक्त गुजरने के बाद भी भारमली के न आने पर रानी जब राव के कक्ष में गई तो वहां भारमली को उनके आगोश में देखा। इससे नाराज हो उमादे ने राव के स्वागत के लिए तैयार किया आरती का थाल वहीं यह कह उलट दिया कि अब राव मेरे लायक नहीं रहे।
सुबह राव मालदेव नशा उतरा तब वे बहुत शर्मिंदा हुए और रानी के पास गए, लेकिन तब तक वह रानी उमादे रूठ चुकी थी। रानी अपने प्रण पर कायम रही और आजीवन राजा से बात नहीं की।
कभी नहीं मिली राजा से, लेकिन उनके साथ हो गई सती
रानी उमादे आजीवन राव मालदेव से रूठीं ही रही और इतिहास में रूठीं रानी के नाम से मशहूर हुई। इस रानी के लिए किले की तलहटी में एक अलग महल भी बनवाया गया, लेकिन वह वहां भी कुछ दिन रह कर वापस लौट गई। जब शेरशाह सूरी ने मारवाड़ पर आक्रमण किया तो रानी से बहुत प्रेम करने वाले राव मालदेव ने युद्ध में प्रस्थान करने से पूर्व एक बार उनसे मिलने का अनुरोध किया। एक बार मिलने को तैयार होने के बाद रानी उमादे ने ऐन वक्त पर मिलने से इनकार कर दिया।
इतिहासकार यह भी मानते है कि रूठी रानी के मिलने से इनकार करने का राव मालदेव पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा और वह अपने जीवन में पहली बार कोई युद्ध हार गया। वर्ष 1562 में राव मालदेव के निधन का समाचार मिलने पर रानी उमादे को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्हें बहुत कष्ट पहुंचा। राव मालदेव से बहुत प्रेम करने वाली रानी उमादे प्रायश्चित के रूप में उनकी पगड़ी के साथ स्वयं को अग्नि को सौंप सती हो गई।
राजस्थान के राजवंशों के गौरवशाली इतिहास के साथ इनके किस्से भी बड़े रोचक हैं। बात राजा मालदेव की शादी के समय की है। रानी उमादे सुहाग की सेज पर राजा का इंतजार करती रही और वो पहुंचे ही नहीं। रानी ने राजा को बुला लाने के लिए दासी को भेजा। राजा ने दासी को रानी समझ उसे अपने पास बैठा लिया, ये देख रानी गुस्सा हो गई और राजा से जिंदगी भर बात नहीं की। जब राजा रानी को मनाने पहुंचे तो उमादे ने कहा कि अब आप मेरे लायक नहीं रहे। जानें क्या है पूरी कहानी…
पांच सदी पूर्व मारवाड़ में राजा राव मालदेव थे। इनकी एक गलती के कारण उनका नई रानी उनसे सुहागरात पर ही रूठ गई थीं। रानी ने भी ऐसा प्रण लिया कि जीवनभर अपनी बात पर कायम रही और इतिहास में रूठीं रानी के नाम से प्रसिद्ध हो गई। जीवनभर अपने पति से नहीं बोलने वाली रूठी रानी ने मरने के बाद अपने पति का साथ दिया और उसके साथ ही सती हो गई।
कुछ ऐसी है पूरी कहानी
पूरे राजपूताना में आज तक राव मालदेव की टक्कर का अन्य कोई राजपूत शासक नहीं हुआ। जीवन में 52 युद्ध लड़ने वाले इस शूरवीर की शादी 24 वर्ष की आयु में वर्ष 1535 में जैसलमेर की राजकुमारी उमादे के साथ हुआ। उमादे अपनी सुंदरता व चतुरता के लिए प्रसिद्ध थी। राठौड़ राव मालदेव की बरात शाही लवाजमे के साथ जैसलमेर पहुंची। राजकुमारी उमादे राव मालदेव जैसा शूरवीर और महाप्रतापी राजा को पति के रूप में पाकर बहुत खुश थी।
शादी होने के बाद राव मालदेव अपने सरदारों व संबंधियों के साथ महफिल में बैठ गए और रानी उमादे सुहाग की सेज पर उनकी राह देखती-देखती थक गई। इस पर रानी ने दहेज में मिली अपनी खास दासी भारमली को राजा को बुलाने भेजा। दासी भारमली राव मालदेव को बुलाने गई। खूबसूरत दासी को नशे में चूर राव ने रानी समझ कर अपने पास बैठा लिया।
काफी वक्त गुजरने के बाद भी भारमली के न आने पर रानी जब राव के कक्ष में गई तो वहां भारमली को उनके आगोश में देखा। इससे नाराज हो उमादे ने राव के स्वागत के लिए तैयार किया आरती का थाल वहीं यह कह उलट दिया कि अब राव मेरे लायक नहीं रहे।
सुबह राव मालदेव नशा उतरा तब वे बहुत शर्मिंदा हुए और रानी के पास गए, लेकिन तब तक वह रानी उमादे रूठ चुकी थी। रानी अपने प्रण पर कायम रही और आजीवन राजा से बात नहीं की।
कभी नहीं मिली राजा से, लेकिन उनके साथ हो गई सती
रानी उमादे आजीवन राव मालदेव से रूठीं ही रही और इतिहास में रूठीं रानी के नाम से मशहूर हुई। इस रानी के लिए किले की तलहटी में एक अलग महल भी बनवाया गया, लेकिन वह वहां भी कुछ दिन रह कर वापस लौट गई। जब शेरशाह सूरी ने मारवाड़ पर आक्रमण किया तो रानी से बहुत प्रेम करने वाले राव मालदेव ने युद्ध में प्रस्थान करने से पूर्व एक बार उनसे मिलने का अनुरोध किया। एक बार मिलने को तैयार होने के बाद रानी उमादे ने ऐन वक्त पर मिलने से इनकार कर दिया।
इतिहासकार यह भी मानते है कि रूठी रानी के मिलने से इनकार करने का राव मालदेव पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा और वह अपने जीवन में पहली बार कोई युद्ध हार गया। वर्ष 1562 में राव मालदेव के निधन का समाचार मिलने पर रानी उमादे को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्हें बहुत कष्ट पहुंचा। राव मालदेव से बहुत प्रेम करने वाली रानी उमादे प्रायश्चित के रूप में उनकी पगड़ी के साथ स्वयं को अग्नि को सौंप सती हो गई।