अरावली श्रृंखला के बीच स्थित विशाल नाहरगढ़ किला जयपुर शहर का गौरव है। आमेर किले और जयगढ़ किले के साथ नाहरगढ़ किला जयपुर शहर के रक्षा चक्र का काम करता है। यह किला जयगढ़ किले से एक विशाल दीवार के माध्यम से जुड़ा है।
सन् 1868 में महाराजा सवाई राम सिंह ने नाहरगढ़ किले का विस्तार करवाया था। बाद में 1880 में महाराजा सवाई माधो सिंह ने शाही निर्माण परियोजना संभालने वाले राज इमारत को इस किले को मानसून रिट्रीट में बदलने की जिम्मेदारी दी। उन्होंने किले के अंदर ही एक छोटा सा महल डिजाइन करने को कहा जो छुट्टी की सैरगाह हो।
नाहरगढ़ किले का मुख्य आकर्षण माधवेंद्र भवन है जिसे विद्याधर भट्टाचार्य ने डिजाइन किया था। भट्टाचार्य ने ही जयपुर का गुलाबी शहर भी डिज़ाइन किया था। इस भवन की आंतरिक साजसज्जा खूबसूरत भित्ति चित्रों और स्टको डिज़ाइन से की गई है। नाहरगढ़ किले का इस्तेमाल खासतौर पर शाही महिलाओं द्वारा किया जाता था।
महिला क्वार्टर जिसे ’जनाना’ के नाम से जाना जाता है उसे शाही महिलाओं के बीच प्रभाव बनाने के लिए तैयार किया गया था। माधवेंद्र भवन के नाम से भी मशहूर ’जनाना’ को महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने बनवाया था। नाहरगढ़ किले का यह हिस्सा कला, सुंदरता और संस्कृति में राजपूताना की शानदार पसंद के बारे में बखान करता है। यह महिला क्वार्टर चार आंगनों में फैला है। दिलचस्प बात यह है कि शाही पुरूषों ने ’मर्दाना महल’ का भी निर्माण करवाया था।
किले का मूल नाम सुदर्शनगढ़ था जिसे बाद में नाहरगढ़ में बदल दिया गया जिसका मतलब होता है ‘बाघों का निवास’। हालांकि किले का पुराना ढांचा अब खंडहर में बदल चुका है पर महाराजा सवाई राम सिंह और महाराजा सवाई माधो सिंह द्वारा 19वीं सदी में बनवाया गया महल अब भी अच्छी स्थिति में है।
इस किले का नाम बदलने के पीछे एक अजीब इतिहास है। मिथक के अनुसार जिस भूमि पर इस किले का निर्माण हुआ वो एक राठौड़ राजकुमार नाहर सिंह भूमिया के नाम थी। उनकी मृत्यु के बाद उनकी आत्मा इस पवित्र स्थान की रखवाली करती थी और उसे इस किले का होने वाला निर्माण कार्य बिलकुल पसंद नहीं था।
मजदूर यहां जो भी निर्माण कार्य करते वो रात को बर्बाद हो जाता। इसलिए नाहर सिंह की आत्मा को शांत करने के लिए एक छोटा किला नाहर सिंह के नाम से बनाया गया जिसमें उनकी आत्मा आराम से रह सके। बाद में उनके नाम पर एक मंदिर भी बनाया गया। इस तरह किले का नाम नाहरगढ़ किला पड़ा।
कहा जाता है कि किले के निर्माण के दौरान कई ऐसी गतिविधियां देखी गई। जिससे मजदूर डर जाते थे। वो जो भी काम करते थे अगले दिन वो काम तहस-नहस दिखता था. जिससे मजदूर काफी डरे रहते थे।
किले के पास जंगल है सबसे खतरनाक
नाहरगढ़ किले के पास बहुत बड़ा जंगल है. कहा जाता है कि राजा वहां शिकार पर जाया करते थे। आज भी ये जंगल काफी खतरनाक माना जाता है क्योंकि यहां जानवर घूमा करते दिखते हैं. इसलिए पर्यटकों को जंगल से दूर रखा जाता है।
आमिर खान कर चुके हैं यहां शूटिंग
फिल्म रंग दे बसंती की ज्यादातर शूटिंग राजस्थान में हुई थी. नाहरगढ़ फोर्ट में उन्होंने शूटिंग की थी. जिसके बाद ये किला और फेमस हो गया था. यही नहीं, शुद्ध देसी रोमांस के लिए एक्टर सुशांत सिंह राजपूत भी यहां शूटिंग कर चुके हैं।

नाहरगढ़ किले का इतिहास
सन् 1868 में महाराजा सवाई राम सिंह ने नाहरगढ़ किले का विस्तार करवाया था। बाद में 1880 में महाराजा सवाई माधो सिंह ने शाही निर्माण परियोजना संभालने वाले राज इमारत को इस किले को मानसून रिट्रीट में बदलने की जिम्मेदारी दी। उन्होंने किले के अंदर ही एक छोटा सा महल डिजाइन करने को कहा जो छुट्टी की सैरगाह हो।
नाहरगढ़ किले का मुख्य आकर्षण माधवेंद्र भवन है जिसे विद्याधर भट्टाचार्य ने डिजाइन किया था। भट्टाचार्य ने ही जयपुर का गुलाबी शहर भी डिज़ाइन किया था। इस भवन की आंतरिक साजसज्जा खूबसूरत भित्ति चित्रों और स्टको डिज़ाइन से की गई है। नाहरगढ़ किले का इस्तेमाल खासतौर पर शाही महिलाओं द्वारा किया जाता था।
महिला क्वार्टर जिसे ’जनाना’ के नाम से जाना जाता है उसे शाही महिलाओं के बीच प्रभाव बनाने के लिए तैयार किया गया था। माधवेंद्र भवन के नाम से भी मशहूर ’जनाना’ को महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने बनवाया था। नाहरगढ़ किले का यह हिस्सा कला, सुंदरता और संस्कृति में राजपूताना की शानदार पसंद के बारे में बखान करता है। यह महिला क्वार्टर चार आंगनों में फैला है। दिलचस्प बात यह है कि शाही पुरूषों ने ’मर्दाना महल’ का भी निर्माण करवाया था।
नाहरगढ़ किले की वास्तुकला

किले का मूल नाम सुदर्शनगढ़ था जिसे बाद में नाहरगढ़ में बदल दिया गया जिसका मतलब होता है ‘बाघों का निवास’। हालांकि किले का पुराना ढांचा अब खंडहर में बदल चुका है पर महाराजा सवाई राम सिंह और महाराजा सवाई माधो सिंह द्वारा 19वीं सदी में बनवाया गया महल अब भी अच्छी स्थिति में है।
नाहरगढ़ किले से जुड़ा रोचक तथ्य
मजदूर यहां जो भी निर्माण कार्य करते वो रात को बर्बाद हो जाता। इसलिए नाहर सिंह की आत्मा को शांत करने के लिए एक छोटा किला नाहर सिंह के नाम से बनाया गया जिसमें उनकी आत्मा आराम से रह सके। बाद में उनके नाम पर एक मंदिर भी बनाया गया। इस तरह किले का नाम नाहरगढ़ किला पड़ा।
कोई रोकता था मजदूरों को काम करने से
किले के पास जंगल है सबसे खतरनाक
नाहरगढ़ किले के पास बहुत बड़ा जंगल है. कहा जाता है कि राजा वहां शिकार पर जाया करते थे। आज भी ये जंगल काफी खतरनाक माना जाता है क्योंकि यहां जानवर घूमा करते दिखते हैं. इसलिए पर्यटकों को जंगल से दूर रखा जाता है।
आमिर खान कर चुके हैं यहां शूटिंग
फिल्म रंग दे बसंती की ज्यादातर शूटिंग राजस्थान में हुई थी. नाहरगढ़ फोर्ट में उन्होंने शूटिंग की थी. जिसके बाद ये किला और फेमस हो गया था. यही नहीं, शुद्ध देसी रोमांस के लिए एक्टर सुशांत सिंह राजपूत भी यहां शूटिंग कर चुके हैं।