नसा माता मंदिर राजस्थान के शक्ति मंदिरों में से एक है, जिसका प्रबंधन श्री माता मानसा देवी मदिर बोर्ड द्वारा किया जाता है। ये मंदिर में कई जागरण और कीर्तन भी करवाते है। यह देवी पार्वती को समर्पित एक और मंदिर है जो यह भक्तों को अपनी और आकर्षित करता है।

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यह मंदिर नवरात्रि के अवसर पर एक बड़ा पूजा का स्थान बन जाता है (चैत्र और अश्विन अर्थात् अप्रैल और अक्टूबर में क्रमशः साल में दो बार) और हर साल एक भव्य मेला आयोजित किया जाता है, बड़े जागरणों का आयोजन किया जाता है, हजारों लोग एक साथ इकट्ठा होकर देवी को श्रद्धांजलि देते है।

मुख्य मंदिर देवी पार्वती से जुड़ा हुआ है, और इसमें देवता की मूर्ति भी है। मंदिर का मुख्य आकर्षण नवरात्री भव्य मेला है जो सभी राज्यों के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है और राजस्थान का सबसे बड़ा त्योहार बनाता है।यह राज्य पहले ही अपने मेलों और त्यौहारों के लिए जाना जाता है और यह राजस्थान में मनाए जाने वाले त्योहारों में से एक है।

मनसा माता मंदिर का इतिहास

मंदिर  हसनपुर के महाराजा मित्तल भगवान द्वारा बनाया गया था परन्तु कुछ समय बाद देवी दूर्गा की मूर्ति को सेठ रामवत मुच्छल द्वारा पूर्ण संगमरमर से बनाया गया। जिसका अनुसरण हसम्पुर के महाराजा द्वारा किया गया था।

लेकिन बाद में मंदिर का प्रबंधन और देखभाल राजस्थान संरक्षण द्वारा किया गया था लेकिन राजस्थान के रियासत के साथ पेपसु के साथ विलय भी हुआ था और मंदिरों की देखरेख न करने के कारण ,यह खराब स्थिती में था लेकिन बाद में, राजस्थान के राजा ने कुछ पुजारीयों को नियुक्त किया जिन्हें इस मंदिर के केशवपंडित के रूप में बुलाया जाता था।

उनका कर्तव्य  देवी की पूजा करना और सभी आवश्यक धार्मिक रीति रिवाजो को पूरा करना था। और वे  सभी राजसी राज्य के पेपसु में विलय के बाद मुख्य लोग थे लेकिन ये पुजारी स्वतंत्र बन गए और  वे मंदिर की देखभाल और नियंत्रण की परवाह नहीं करते थे जिससे मंदिर का प्रबंधन बदतर हो गया था।

मंदिर तक आती थी 3 किमी लम्बी गुफा

कहा जाता है कि जिस जगह पर आज मां मनसा देवी का मंदिर है, यहां पर सती माता के मस्तक का आगे का हिस्सा गिरा था। मनसा देवी का मंदिर पहले मां सती के मंदिर के नाम से जाना जाता था। मान्यता है कि मनीमाजरा के राजा गोपालदास ने अपने किले से मंदिर तक एक गुफा बनाई हुई थी, जो लगभग 3 किलोमीटर लंबी है। वे रोज इसी गुफा से मां सती के दर्शन के लिए अपनी रानी के साथ जाते थे। जब तक राजा दर्शन नहीं नहीं करते थे, तब तक मंदिर के कपाट नहीं खुलते थे