राजस्थान के रीति-रिवाज
➧ आठवाँ पूजन
स्त्री के गर्भवती होने के सात माह पूरे कर लेती है तब इष्ट देव का पूजन किया जाता है और प्रीतिभोज किया जाता है।
➧ पनघट पूजन या जळवा पूजन
बच्चे के जन्म के कुछ दिनों पश्चात (सवा माह बाद) पनघट पूजन या कुआँ पूजन की रस्म की जाती है इसे जलमा पूजन भी कहते हैं।
➧ आख्या
बालक के जन्म के आठवें दिन बहने जच्चा को आख्या करती है और एक मांगलिक चिह्न 'साथिया' भेंट करती है।
➧ जड़ूला उतारना
जब बालक दो या तीन वर्ष का हो जाता है तो उसके बाल उतराए जाते हैं। वस्तुतः मुंडन संस्कार को ही जडूला कहते हैं।
➧ सगाई
वधू पक्ष की ओर से संबंध तय होने पर सामर्थ्य अनुसार शगुन के रुपये तथा नारियल दिया जाता है।
➧ बिनौरा
सगे संबंधी व गाँव के अन्य लोग अपने घरों में वर या वधू तथा उसके परिवार को बुला कर भोजन कराते हैं जिसे बिनौरा कहते हैं।
➧ तोरण
यह जब बारात लेकर कन्या के घर पहुँचता है तो घोड़ी पर बैठे हुए ही घर के दरवाजे पर बँधे हुए तोरण को तलवार से छूता है जिसे तोरण मारना कहते हैं। तोरण एक प्रकार का मांगलिक चिह्न है।
➧ खेतपाल पूजन
राजस्थान में विवाह का कार्यक्रम आठ दस दिनों पूर्व ही प्रारंभ हो जाते हैं। विवाह से पूर्व गणपति स्थापना से पूर्व के रविवार को खेतपाल बावजी (क्षेत्रपाल लोकदेवता) की पूजा की जाती है।
➧ कांकन डोरडा
विवाह से पूर्व गणपति स्थापना के समय तेल पूजन कर वर या वधू के दाएँ हाथ में मौली या लच्छा को बंट कर बनाया गया एक डोरा बाँधते हैं जिसे कांकन डोरडा कहते हैं। विवाह के बाद वर के घर में वर-वधू एक दूसरे के कांकन डोरडा खोलते हैं।
➧ मौसर
किसी वृद्ध की मृत्यु होने पर परिजनों द्वारा उसकी आत्मा की शांति के लिए दिया जाने वाला मृत्युभोज मौसर, औसर या नुक्ता कहलाता है।
➧ जौसर
कोई व्यक्ति जीते जी मृत्युभोज करता है उसे जौसर कहा जाता है।
➧ बान बैठना व पीठी करना
लग्नपत्र पहुँचने के बाद गणेश पूजन (कांकन डोरडा) पश्चात विवाह से पूर्व तक प्रतिदिन वर व वधू को अपने अपने घर में चौकी पर बैठा कर गेहूँ का आटा, बेसन में हल्दी व तेल मिला कर बने उबटन (पीठी) से बदन को मला जाता है, जिसको पीठी करना कहते हैं। इस समय सुहागन स्त्रियाँ मांगलिक गीत गाती है। इस रस्म को 'बान बैठना' कहते हैं।
➧ बिन्दोली
विवाह से पूर्व के दिनों में वर व वधू को सजा धजा और घोड़ी पर बैठा कर गाँव में घुमाया जाता है जिसे बिन्दोली निकालना कहते हैं।
➧ मोड़ बाँधना
विवाह के दिन सुहागिन स्त्रियाँ वर को नहला धुला कर सुसज्जित कर कुलदेवता के समक्ष चौकी पर बैठा कर उसकी पाग पर मोड़ (एक मुकुट) बांधती है।
➧ बरी पड़ला
विवाह के समय बारात के साथ वर के घर से वधू को साड़ियाँ व अन्य कपड़े, आभूषण, मेवा, मिष्ठान आदि की भेंट वधू के घर पर जाकर दी जाती है जिसे पड़ला कहते हैं। इस भेंट किए गए कपड़ों को 'पड़ले का वेश' कहते हैं। फेरों के समय इन्हें पहना जाता है।
➧ मारत
विवाह से एक दिन पूर्व घर में रतजगा होता है, देवी-देवताओं की पूजा होती है और मांगलिक गीत गाए जाते हैं। इस दिन परिजनों को भोजन भी करवाया जाता है। इसे मारत कहते हैं।
➧ पहरावणी या रंगबरी
विवाह के पश्चात दूसरे दिन बारात विदा की जाती है। विदाई में वर सहित प्रत्येक बाराती को वधूपक्ष की ओर से पगड़ी बँधाई जाती है तथा यथा शक्ति नगद राशि दी जाती है। इसे पहरावणी कहा जाता है।
➧ सामेला
जब बारात दुल्हन के गांव पहुंचती है तो वर पक्ष की ओर से नाई या ब्राह्मण आगे जाकर कन्यापक्ष को बारात के आने की सूचना देता है। कन्या पक्ष की ओर उसे नारियल एवं दक्षिणा दी जाती है। फिर वधू का पिता अपने सगे संबंधियों के साथ बारात का स्वागत करता है, स्वागत की यह क्रिया सामेला कहलाती है।
➧ बढार
विवाह के अवसर पर दूसरे दिन दिया जाने वाला सामूहिक प्रीतिभोज बढार कहलाता है।
➧ कुँवर कलेवा
सामेला के समय वधू पक्ष की ओर से वर व बारात के अल्पाहार के लिए सामग्री दी जाती है जिसे कुँवर कलेवा कहते हैं।
➧ बींद गोठ
विवाह के दूसरे दिन संपूर्ण बारात के लोग वधू के घर से कुछ दूर कुएँ या तालाब पर जाकर स्थान इत्यादि करने के पश्चात अल्पाहार करते हैं जिसमें वर पक्ष की ओर से दिए गए कुँवर-कलेवे की सामग्री का प्रयोग करते है। इसे बींद गोठ कहते हैं।
➧ मायरा
राजस्थान में मायरा भरना विवाह के समय की एक रस्म है। इसमें बहन अपनी पुत्री या पुत्र का विवाह करती है तो उसका भाई अपनी बहन को मायरा ओढ़ाता है जिसमें वह उसे कपड़े, आभूषण आदि बहुत सारी भेंट देता है एवं उसे गले लगाकर प्रेम स्वरुप चुनड़ी ओढ़ाता है। साथ ही उसके बहनोई एवं उसके अन्य परिजनों को भी कपड़े भेंट करता है।
➧ डावरिया प्रथा
यह रिवाज अब समाप्त हो चुका है। इसमें राजा-महाराजा और जागीरदार अपनी पुत्री के विवाह में दहेज के साथ कुँवारी कन्याएं भी देते थे जो उम्र भर उसकी सेवा में रहती थी। इन्हें डावरिया कहा जाता था।
➧ नाता प्रथा
कुछ जातियों में पत्नी अपने पति को छोड़ कर किसी अन्य पुरुष के साथ रह सकती है। इसे नाता करना कहते हैं। इसमें कोई औपचारिक रीति रिवाज नहीं करना पड़ता है। केवल आपसी सहमति ही होती है। विधवा औरतें भी नाता कर सकती है।
➧ नांगल
नवनिर्मित गृहप्रवेश की रस्म को नांगल कहते हैं।
➧ अन्गवारौ
किसानो द्वारा पारस्परिक सहयोग से कृषी कार्य करने की प्रथा।
➧ ओडावनी
विशेष त्यौहार, शादीयो में वर, वधु माता-पिता आदी को देने वाले कपड़े।
➧ गाघरानो
पुर्नविवाह विशेष कर देवर के साथ।
➧ ढूढ
बच्चे के जन्म के प्रथम होली पर किया जाने वाला संस्कार।
➧ न्हावन
प्रसूता का प्रथम स्नान उस दिन किया जाने वाला संस्कार।
➧ सतावाडो
प्रसूता के सातवे दिन किया जाने वाला संस्कार।
➧ हरवन गायन
मकर सक्रांती पर गाये जाने वाले श्रवण के गीत।
➧ सोटा-सोटी खेलना
यह एक वैवाहिक रस्म है जिसमे दूल्हा दुल्हन गीत गाती स्त्रियों के झुण्ड के बिच गोलाकार घुमते हुए हरे नीम की टहनी से एक-दुसरे को मारते है, दुल्हे के बाद दुल्हन अपने देवर के साथ साटकी खेलती है।
➧ बनावा , छिक्की (बारात)
पुष्करणा ब्राह्मणों में विवाह के एक रस्म है।
➧ बरी
राजपूतो में बारात के साथ वधु के कपडे ले जाते है जिसे बरी कहते है।
➧ बिहाणा
विवाह के दिनों में प्रात: काल में गाये जाने वाले मांगलिक गीत।
➧ भात
वर/ वधु को ननिहाल पक्ष की तरफ से दिए जाने वाले आभूषण।
➧ रीत
वर पक्ष की और से कन्या के पिता को दिया जाने वाला धन।
➧ विदंडविनायक
मांगलिक कार्यक्रम में सबसे पहले स्थापित होने वाले गणेश स्थापना।
➧ वींदडी
मांगलिक कार्यक्रम में बुलाने के लिए दी जाने वाली कुमकुम पत्रिका।
➧ जात देना
विवाह के दुसरे दिन वर वधु द्वारा गाँव के माताजी या क्षेत्रपाल के थान पर नारियल पूजन।
➧ मुकलावा ( गौना )
बाल विवाह होने पर जब वधु को दुबारा पीहर से सरुराल जाती है तब वर व उसके भाई बंधुओ को कपडे व गहने मिठाई आदि दी जाती है।
➧ ओझण, ऊझनो
कन्या के विदाई की समय साथ में दिया जाने वाला सामान।
➧ कंवर कलैवो
दुल्हे को तोरण पर कराया जाने वाला स्वल्पहार (नाश्ता)।
➧ कांकण डोर
विवाह के समय वर – वधु के बांधे जाने वाले मांगलिक सूत्र।
➧ छोल
दुल्हन की जोली भरने की रस्म।
➧ जुवाछवी
परात में छाछ डालकर खेलाया जाने वाला खेल।
➧ जैवडो
तोरण पर सास द्वारा दुल्हे को आँचल से बाँधने की रस्म।
➧ पडलो
गणेश पूजन की सामग्री के साथ वर पक्ष की और से लाया जाने वाला सामान।
➧ पहरावनी
कन्या के पिता की और से कन्या को दिए जाने वाले आभूषण।
➧ बांदरवाल
मांगलिक शुभ अवसरों पर घर के प्रवेश द्वार एवं मंडप आदि पर पत्तो से बनी बान्दरवाल लटकाई जाती है।
➧ पीठी
वर-वधु का सौन्धर्य निखारने के लिए उनके शरीर पर लगाया जाने वाला हल्दी व आटे का उबटन
➧ बिन्दोली
विवाह के एक दिन पूर्व वर वधु को मांगलिक गाते हुए गुमाना।
➧ फेरा
वर वधु परिणय सूत्र में अग्नि के समक्ष सात फेरे।
➧ हथलेवों
वर वधु को हाथ पकड़ाने की रस्म ( पाणीग्रह संस्कार)।
➧ उठावना
मृतक के पीछे राखी जाने वाली तीन या बारह दिवसीय बैठक।
➧ आदिसराध
मृत्यु के बाद ग्यारवे दिन किया जाने वाला श्राद्ध।
➧ मुकाण
मृत्यु के बाद सबंधियो के पास सवेंदना प्रकट करने की प्रक्रिया।
➧ सगातैडा
मृतक के बाद किया जाने वाला भोज।
➧ साथरवाडो
मृत्यु के बाद परिवालो की पास जाकर बैठने की प्रक्रीया को।
➧ हुक्का भरने जाना
मृतक के बाद सातरवाडा में बैठने जाने को हुक्का भरना कहते है।
➧ पगड़ी बांधना
मृतक के बाद औसर के बाद बड़े बेटे को पगड़ी बांधी जाते है।
➧ पानीवाडा
मृतक के बाद तालाब या पानी से नहाने की प्रक्रिया है।