दयपुर राजस्थान का बहुत ख़ूबसूरत शहर है। दुनिया भर से लोग यहां घूमने आते है। उदयपुर की खास महलों  में से घूमने के लिए जो सबसे ज़्यादा मशहूर है, वो है सिटी पैलेस। तक़रीबन 400 साल पहले इस पैलेस का निर्माण शुरू किया गया था। यह पैलेस एक पहाड़ी की चोटी पर बनाया गया है। आइए जानते है इस पैलेस के बारे में कुछ रोचक बातें:



सिटी पैलेस का इतिहास

यह पैलेस राजस्थान के बड़े शाही महलों में से एक है। सिटी पैलेस को महाराणा उदय सिंह ने 1569 में बनवाना शुरू किया था। इस के बाद जो भी इस पैलेस के राजा बने, उन्होंने इसे अपने-अपने शासन काल में पूरा करवाया।



सिटी पैलेस उदयपुर का इतिहास उस समय वापस चला जाता है जब महाराणा उदय सिंह उदयपुर शहर की स्थापना कर रहे थे। वह और उसकी भविष्य की पीढ़ी ने महल एक दूसरे के बाद बनाया। महाराणा उदय सिंह द्वितीय चित्तौड़ में मेवार साम्राज्य का मुखिया थे जहां वे चित्तौड़गढ़ किले से शासन करते थे।

मुगलों के साथ लगातार युद्ध के कारण, महाराणा उदय सिंह का डर था कि वह राज्य खो सकता है, इसलिए उन्होंने झील पिचोला के स्थान को चुना जो सुरक्षित था और अरावली रेंज और घने वनों से घिरा हुआ था। राय आंगन या रॉयल कोर्टयार्ड सिटी पैलेस की पहली इमारत थी।

इस पैलेस का निर्माण 11 पड़ांव में पूरा किया गया था। हैरानी की बात तो यह है इतने पड़ाँवों के पूरा होने के बाद भी इसके दिखने में कोई अंतर नहीं है। इस पैलेस को बनने में 400 साल लगे।

इस पैलेस से जुड़ी कुछ और रोचक बातें


इस पैलेस के परिसर में 11 महल और भी मौजूद हैं। जिनमें 22 अलग- अलग राजाओं ने राज किया है। वैसे तो यह सभी महल देखने में सुंदर है, लेकिन इनमें शीश महल, मोर चौंक , मोती महल और कृष्णा विलास सबसे ज़्यादा अपनी और आकृषित करते है।

पैलेस के अंदर कई गुंबद, आंगन, गलियारे, कमरे, मंडप, टावर, और हैंगिंग गार्डन हैं, जो कि पैलेस की सुंदरता को और भी बढ़ाते हैं।

यह पैलेस पिछोला झील के किनारे एक पहाड़ी की चोटी पर बना हुआ है। जहां से पूरे शहर को देखा जा सकता है।

ओर महलों की तरह इस महल में भी बहुत दरवाज़े है। ग्रेट गेट महल का मुख्य दरवाज़ा है। एक द्वार जिसके करीब एक क्षेत्र है जहाँ हाथियों की लड़ाई हुआ करती थी, उसको त्रिधनुषाकार द्वार या फिर त्रिपोलिया द्वार भी कहते है।

इस पैलेस में राजाओं को चांदी और सोने से तौला जाता था, तौलने के बाद जितना भी सोना और चांदी होता था, उसे गरीबों में बाँट दिया जाता था।

पैलेस की सबसे खास बात यह है कि यहां एक कमरे में पंखा रखा हुआ है। जिसे चलाने के लिये 220 वोल्ट के करेंट की ज़रूरत नहीं होती, बल्कि यह पंखा मिट्टी के तेल से चलता है। पहले तेल जलता है, तो उसकी गर्मी से हवा का दबाव बनता है। हवा के इस दबाव से पंखे का अंदरूनी हिस्सा घूमता है और पंखा चलने लगता है।

भीम विलास नाम के महल को हिंदू देवी – देवता, राधा और कृष्ण के चित्रों के साथ सजाया गया है। इस पैलेस के अंदर एक जगदीश मंदिर भी है, जिसे उदयपुर के सबसे बड़े मंदिर के रूप में जाना जाता है।

हालांकि महल के कई द्वार हैं, लेकिन मुख्य प्रवेश द्वार को बड़ा पोल के रूप में जाना जाता है और यह माना जाता है कि महाराजा को सोने और चांदी के साथ बारपोल मै तौला जाता था, जिसके बाद में राज्य के स्थानीय लोगों के बीच वह सोना चांदी वितरित किया जाता था।

उदयपुर सिटी पैलेस परिसर पहाड़ी स्थल पर बना है, जहां एक साधु (जो पिचोला झील के ऊपर एक पहाड़ी की चोटी पर ध्यान दे रहा था) महाराजा उदय सिंह से मुलाकात की और उसके महल के परिसर के रूप में उस स्थान को विकसित करने के लिए कहा।

हाथी युद्ध भी किंग पैलेस कॉम्प्लेक्स के राजाओं द्वारा आयोजित किए गए थे, जिनकी तस्वीरें महल की दीवारों पर चित्रों द्वारा चित्रित की गई हैं। यह भी कहा जाता है कि ये हाथियों को लड़ाई से पहले अफ़ीम खिलाई जाती थी ।

इस पैलेस में कई बड़ी हस्तियों की शादी हुई जिनका नाम है, रवीना टंडन और लखनऊ बेस्ड बिजनेसमैन गौरव शर्मा।

इस पैलेस में घूमने का समय सुबह 9:30 बजे से शाम 5:30 बजे तक है। लेकिन इंडियन फेस्टिवल वाले दिनों में ये बंद होता है।