जमेर शरीफ दरगाह दरगाह शरीफ, ख्वाजा गरीबनवाज़ दर्गाह अजमेर, अजमेर दरगाह, अजमेर शरीफ के नामों से भी जानी जाती है। यह राजस्थान का सबसे लोकप्रिय और महत्वपूर्ण मुस्लिम तीर्थ स्थल है। हर समुदायों के लोग यहां दर्शन करने आते हैं और अजमेर शरीफ में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के दरगाह में अपनी श्रद्धा अर्पण करते हैं। अजमेर शरीफ में भक्तो की मनोकामनाएँ पूरी होती है जिस वजह से यह स्थान काफी प्रसिद्ध है। अनेक धर्मों के विभिन्न अनुयायी दरगाह पर फूल, मखमली कपड़ा, इत्र और चादर आदि चढ़ाते है।

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अजमेर शरीफ का इतिहास

ख्वाजा गारीब नवाज दरगाह अजमेर हज़रत ख्वाजा मोइन-द-दीन चिश्ती  की कब्र है, जो भारत में इस्लाम के संस्थापक थे और  उन्हें दुनिया में इस्लाम के महान प्रचारक के रूप में जाना जाता था। वह अपनी महान शिक्षा और शांति के लिए प्रसिद्ध थे। माना जाता है कि यह सूफी संत फारस से आया था और सभी दिल जीतने के बाद अजमेर में 1236 में इनका निधन हो गया था|  इन्हें “ख्वाजा ग़रीब” के रूप में भी जाना जाता है।

इसके पश्चात् मुगल सम्राट हुमायूं, अकबर, शाहजहां और जहांगीर ने यहाँ मस्जिदों का निर्माण किया। दरगाह का  मुख्य कब्र दरवाज़ा निजाम गेट के रूप में जाना जाता है जिसे शाहजहां द्वारा बनाया गया था, जिस वजह से इसे शाहजहानी गेट भी कहा जाता है। उसके बाद,  एक बुलंद दरवाजा है जिसपर उर्स झंडा  फहराया जाता है जो उर्स त्योहार की शुरुआत माना जाता है।

अजमेर दरगाह के स्मारक

अजमेर शरीफ दरगाह के दर्शन करते समय आपको  विभिन्न स्मारकों और भव्य इमारते दिखेंगी। इन सभी इमारतों को भारत के कई शासकों द्वारा बनाया गया था। इसे काफी समय पहले से पवित्र माना जाता है।  निजाम नामक दरवाजे से दरगाह में प्रवेश लिया जाता है  जिसे बाद में शाहजहानी गेट कहा जाने लगा। इसका  निर्माण मुगल सम्राट शाहजहां ने किया था। इसके बाद  बुलंद दरवाजा  है जिसे महमूद खिलजी द्वारा बनाया गया था।

अजमेर शरीफ दरगाह में जाने के दौरान आपको  कुछ स्मारक देखने को मिलेंगे 

बुलंद दरवाजा : यह महमूद खिलजी और उनके उत्तराधिकारियों द्वारा निर्मित एक विशाल द्वार है। उर्स त्यौहार के शुरू होने से पहले गेट के ऊपर झंडा  फहराया जाता है।

निजाम गेट : यह 1911 में हैदराबाद दक्कन के मीर उस्मान अली खान द्वारा बनाया गया था।

डीग्स : डीग्स का अर्थ है एक बड़ा बर्तन  जिसे ऐतिहासिक काल  में खाना पकाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। जिसे आप  दूसरे बुलंद दरवाजा के छोर पर देख सकते है  जो साहम चिराग के सामने स्थित है। इस बड़ी कड़ाही का किनारों से घेरा 10-1/4 फीट है। जिसमे 70 पौंड के करीब चावल बनाये जा सकते है, जबकि छोटी कड़ाही 28 पाउंड बनती है। उनमें से एक 1567 ईस्वी में अकबर द्वारा प्रस्तुत किया गया था

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समखाना या महफिलखाना : यहाँ आप रूह को छू देने वाली कव्वाली सुन सकते है यह सहम चिराग के पश्चिमी तरफ स्थित है।वह स्थान जहां कव्वाली गायी जाती है उसे  हैदराबाद दक्कन के नवाब बशीर-उद-डोला असमान जहां द्वारा बनाया गया था।

खिदमत:  यह रिवाज़ मजार की सफाई  की जाती है और फूल चढ़ाये जाते है। ख़िदमत दिन में दो बार किया जाता है। एक सुबह 4:00 बजे अजान के समय और दूसरा शाम 3:00 बजे। सुबह की खिदमत फ़जर की प्रार्थना से आधे घंटे पहले की जाती है और शाम की  खिदमत  केवल पुरुषों द्वारा ही की जाती है। महिलाओ  को खिदमत की अनुमति नहीं है।  फूलों और चंदन का चढ़ावा खादीम के फतेहा पढ़ने के साथ होता है।

बेगमी दालान: यह मुख्य दरगाह के पूर्वी हिस्से में स्थित एक छोटा और सुंदर बरामदा है जिसे  बेगमी दालान खा जाता है जो शाहजहाँ की पुत्री  ( राजकुमारी जहां आरा बेगम) द्वारा बनाया गया था।

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प्रकाश (रोस): खादिम ड्रम बजाते हुए मोमबत्ती लेकर  दरगाह के अंदर प्रवेश करते है और पवित्र शब्दों के पाठ के साथ चार कोनों में उन्हें जलाते हैं।

करका: यह कब्र का समापन समारोह है जो ईशा प्रार्थना के एक घंटे बाद किया जाता है। रात का 5 वां भाग बीत जाने के 20 मिनट पहले घड़ी 5 बार बजती है | भक्तो को दरगाह से बाहर भेज दिया जाता है और तीन खादिम दरगाह की सफाई करते है | छठी घंटी बजने के पश्चात् कव्वाल एक विशेष गाना गाता है और दरगाह के दरवाजे बंद  कर दिए जाते है|

समा (कव्वाली): अल्लाह की ख़ुशी में गए जाने वाले गाने जो कव्वाल द्वारा गये जाते है ये धार्मिक गायक है और सभी नवाज़ खत्म होने के पश्चात् मज़ार के सामने महेफिल-ए-समा में गाया करते है| इसके अलावा, हर दिन कुरान का आयोजन होता है।

अजमेर शरीफ में उर्स

भारत में मुस्लिम का सबसे बड़ा मेला, सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का वार्षिक उर्स त्यौहार  राजस्थान के अजमेर में संत की दरगाह में आयोजित किया जाता है। उर्स उत्सव छह दिन तक मनाया जाता है, जो चिश्ती के सज़ादान (उत्तराधिकारी) के आदेश द्वारा कब्र पर सफेद झन्डा फहराने के साथ शुरू होता है।

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इन दिनों में, कब्र को धार्मिक परम्परा द्वारा गुलाब और चंदन के पेस्ट से अभिषेक किया जाता है; कव्वालिया गई जाती हैं और इश्वर की प्रशंसा में कवितायेँ बोली जाती हैं, प्रार्थनायें की जाती है  कव्वालिया और कई अन्य कार्यक्रम आपस में भाईचारा बढ़ाते है| भक्त अपना नजराना या भव्य प्रसाद पेश करते हैं।

दरगाह के बाहर, दो बड़ी कढ़ाई है, जिसमे मीठे चावल बनाये जाते है और उसे मेवो से सजाया जाता है| और एक मसालों द्वारा बनी ‘टारूरुख’ या पवित्र भोजन बनाया जाता है। वार्षिक त्यौहार उर्स बुलंद दरवाजा पर ध्वज फहराने से शुरू होता है।

रजब के महीने में चाँद के दिखने पर उर्स उत्सव की शुरुआत होती है। उर्स त्यौहार के प्रारंभ होने पर, दरगाह के दैनिक कार्यक्रमों में परिवर्तन आ जाता है। दरगाह का प्रवेश द्वार जी अक्सर रात में बंद किया जाता था वह इस समय 2 या 3 घंटे को छोड़कर सभी दिन और रात दरवाजों को खोला जाता है।

क्यूल दिवस : यह उर्स त्यौहार का अंतिम दिन है जो त्यौहार के छठे दिन मनाया जाता है। यह त्यौहार का  सबसे महत्वपूर्ण दिन है और सुबह प्रार्थना के बाद भक्त पवित्र मकबरे में इकट्ठा होते है इन सभी गतिविधियों के बाद कुरान का पाठ, दरूद, शांति, शिजरा-ए-चिश्ती और अन्य छंद गाये जाते है। भक्त एक दूसरे के लिए छोटी पगड़ी बांधते हैं और सुख, शांति और समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं।