25 जून 1975 को देश में इमरजेंसी लगाई गई थी। इमरजेंसी के दौरान जयगढ़ किले में पांच महीने तक चली खुदाई के बाद इंदिरा सरकार ने भले ये कहा हो कि कोई खजाना नहीं मिला, मगर जो सामान बरामद बताया गया और उसे जिस तरीके से दिल्ली भेजा गया वह कई सवाल छोड़ गया।

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खजाने की खोज के लिए खुद संजय गांधी पहुंचे थे जयपुर

आपातकाल के दौरान स्वर्गीय संजय गांधी के नाम की तूती बोलती थी और जयपुर में यह बात आम हो चली थी कि संजय गांधी की निगरानी में सब कुछ हो रहा है और गड़ा हुआ धन इंदिरा गांधी ले जाएंगी। एक बार संजय गांधी अचानक अपना छोटा विमान उड़ाकर सांगानेर हवाई अड्डे पहुंचे, तब अफवाह फैल गई कि जयगढ़ में दौलत मिल गई है और संजय गांधी विमान लेकर जयपुर दौलत बटोरने पहुंच गए हैं। सेना के आला अफसर एक-दो बार निरीक्षण के लिए जयगढ़ आए और आसपास हैलिकाॅप्टर से लैंडिंग की तो, यह अफवाह भी फैली की जयगढ़ में दौलत मिल गई है और सेना के हैलिकाॅप्टर इंदिरा गांधी और संजय गांधी के आदेश पर माल दिल्ली ले जाने के लिए आए हैं।

ऑर्मी ने खोद डाला पूरा किला

खुदाई पूरी होने के बाद ये बताया गया कि महज 230 किलो चांदी और चांदी का सामान ही मिला है। सेना ने इन सामानों की सूची बनाकर और राजपरिवार के प्रतिनिधि को दिखाई और उसके हस्ताक्षर लेकर सारा सामान सील कर दिल्ली ले गई। ट्रकों का काफिला जब दिल्ली लौटने लगा तो नए सिरे से अफवाह फैल गई कि जयपुर-दिल्ली का राजमार्ग पूरे दिन बंद कर दिया गया और सेना के ट्रकों में जयगढ़ का माल छुपाकर ले जाया गया है। बताया जाता है कि इंदिरा गांधी और संजय गांधी के आदेशानुसार दिल्ली छावनी में रख दिया गया।

 जयगढ़ किले के खजाने का राज

अक्सर सुनने को मिलता है कि आपातकाल में भारत सरकार ने जयपुर के पूर्व राजघराने पर छापे मारकर उनका खजाना जब्त किया था, राजस्थान में यह खबर आम है कि – चूँकि जयपुर की महारानी गायत्री देवी कांग्रेस व इंदिरा गांधी की विरोधी थी अत: आपातकाल में देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जयपुर राजपरिवार के सभी परिसरों पर छापे की कार्यवाही करवाई, जिनमें जयगढ़ का किला प्रमुख था, कहते कि राजा मानसिंह की अकबर के साथ संधि थी कि राजा मानसिंह अकबर के सेनापति के रूप में जहाँ कहीं आक्रमण कर जीत हासिल करेंगे उस राज्य पर राज अकबर होगा और उस राज्य के खजाने में मिला धन राजा मानसिंह का होगा। 

इसी कहानी के अनुसार राजा मानसिंह ने अफगानिस्तान सहित कई राज्यों पर जीत हासिल कर वहां से ढेर सारा धन प्राप्त किया और उसे लाकर जयगढ़ के किले में रखा, कालांतर में इस अकूत खजाने को किले में गाड़ दिया गया जिसे इंदिरा गाँधी ने आपातकाल में सेना की मदद लेकर खुदाई कर गड़ा खजाना निकलवा लिया।

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यही आज से कुछ वर्ष पहले डिस्कवरी चैनल पर जयपुर की पूर्व महारानी गायत्री देवी पर एक टेलीफिल्म देखी थी उसमें में गायत्री देवी द्वारा इस सरकारी छापेमारी का जिक्र था साथ ही फिल्म में तत्कालीन जयगढ़ किले के किलेदार को भी फिल्म में उस छापेमारी की चर्चा करते हुए दिखाया गया। जिससे यह तो साफ़ है कि जयगढ़ के किले के साथ राजपरिवार के आवासीय परिसरों पर छापेमारी की गयी थी।

जश्रुतियों के अनुसार उस वक्त जयपुर दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग सील कर सेना के ट्रकों में भरकर खजाने से निकाला धन दिल्ली ले जाया गया, लेकिन अधिकारिक तौर पर किसी को नहीं पता कि इस कार्यवाही में सरकार के कौन कौन से विभाग शामिल थे और किले से खुदाई कर जब्त किया गया धन कहाँ ले जाया गया।

चूँकि राजा मानसिंह के इन सैनिक अभियानों व इस धन को संग्रह करने में हमारे भी कई पूर्वजों का खून बहा था, साथ ही तत्कालीन राज्य की आम जनता का भी खून पसीना बहा था। इस धन को भारत सरकार ने जब्त कर राजपरिवार से छीन लिया इसका हमें कोई दुःख नहीं, कोई दर्द नहीं, बल्कि व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि यह जनता के खून पसीने का धन था जो सरकारी खजाने में चला गया और आगे देश की जनता के विकास में काम आयेगा| पर चूँकि अधिकारिक तौर पर यह किसी को पता नहीं कि यह धन कितना था और अब कहाँ है ?

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इसी जिज्ञासा को दूर करने व जनहित में आम जनता को इस धन के बारे जानकारी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से पिछले माह मैंने एक RTI के माध्यम से गृह मंत्रालय से उपरोक्त खजाने से संबंधित निम्न सवाल पूछ सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत जबाब मांगे –

क्या आपातकाल के दौरान केन्द्रीय सरकार द्वारा जयपुर रियासत के किलों, महलों पर छापामार कर सेना द्वारा खुदाई कर रियासत कालीन खजाना निकाला गया था ? यही हाँ तो यह खजाना इस समय कहाँ पर रखा गया है ?

क्या उपरोक्त जब्त किये गए खजाने का कोई हिसाब भी रखा गया है ? और क्या इसका मूल्यांकन किया गया था ? यदि मूल्यांकन किया गया था तो उपरोक्त खजाने में कितना क्या क्या था और है ?

उपरोक्त जब्त खजाने की जब्त सम्पत्ति की यह जानकारी सरकार के किस किस विभाग को है?

इस समय उस खजाने से जब्त की गयी सम्पत्ति पर किस संवैधानिक संस्था का या सरकारी विभाग का अधिकार है?

वर्तमान में जब्त की गयी उपरोक्त संपत्ति को संभालकर रखने की जिम्मेदारी किस संवैधानिक संस्था के पास है?

उस संवैधानिक संस्था या विभाग का का शीर्ष अधिकारी कौन है?

खजाने की खुदाई कर इसे इकठ्ठा करने के लिए किन किन संवैधानिक संस्थाओ को शामिल किया गया और ये सब कार्य किसके आदेश पर हुआ ?

इस संबंध में भारत सरकार के किन किन जिम्मेदार तत्कालीन जन सेवकों से राय ली गयी थी?

आखिर कहां गया खजाना?

जयगढ़ में खोज और खुदाई की खबरें देने वाले वरिष्ठ पत्रकर राजेन्द्र बोड़ा बताते हैं कि आपातकाल में जबकि राजनीतिक या सरकार विरोधी कोई खबर कोई अखबार नहीं छाप सकते थे उस समय जयगढ़ संबंधी खजाने की खोज की अफवाहों से भरी खबरों को पाठकों ने पूरा जायका लेकर पढ़ा।

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यह खबरें उस वक्त भी आम थीं कि भले ही पूर्व राजपरिवार के खजाने का एक बड़ा हिस्सा जयपुर को बसाने में खर्च हो गया था, मगर जवाहरात तब भी सुरक्षित थे। मानसिंह द्वितीय ने अपने काल में जयगढ़ के खजाने के एक बड़े हिस्से को मोतीडूंगरी में रख दिया था।

कानौता के जनरल अमरसिंह की डायरी में भी लिखा हुआ है कि मानसिंह ने जयगढ़ के किलेदारों को बदल दिया। इतिहासविद् डाॅ. चन्द्रमणी सिंह सवाई मानसिंह की प्रशंसा में कहती हैं कि भारत सरकार से हुए कोवेनेन्ट के दौरान मानसिंह ने चतुराई से इस पूरी दौलत को राजपरिवार की निजी संपत्ति बता दिया।

खवासजी के पास था बीजक, जिसके आधार पर चला खोज अभियान

28 जुलाई 1948 में बालाबख्श की 92 वर्ष की उम्र में मृत्यु हो गई, बीजक और दस्तावेज उनके पुत्रों लेखराज और गेगराज के पास रह गए। इसके बाद गेगराज जो परिवार में ही एक गौरीशंकर के घर गोद चले गए थे के पुत्रों महेश कुमार, जयसिंह, गिर्राज, श्याम सुन्दर और सुदर्शन के पास यह दस्तावेज रहे।

सुदर्शन टांक के अनुसार, उनके बड़े भाई जयसिंह जो कोटा में रहकर पत्थर की खान चलाते थे ने कभी किसी वकील को इस प्रकार के दस्तावेज उनके पास होने का जिक्र किया होगा। इसके बाद गुप्तचर एजेंसियां उनके पीछे लग गई और एक दिन पूछताछ के लिए उन्हें दिल्ली ले गई। पूछताछ के दौरान बीजक उनके पास होना जयसिंह ने स्वीकार किया और उसके बाद उसकी फोटोकाॅपी गुप्तचर एजेंसियों को सौंप दी।

इस बीच यह पता चला कि जयपुर रियासत में बड़े ओहदे पर रहे राव कृपाराम के पुत्र राव किस्तूरचन्द के परिवार ने इसी तरह के दस्तावेज जो संभवतः चमड़े पर लिखे गए थे, जयपुर के आखिरी महाराजा सवाई भवानीसिंह को सौंप दिए थे जिसमें लगभग वही सभी विवरण थे जो बालाबख्श के परिवार के पास पाए गए बीजकों में थे।

सुदर्शन टांक बताते हैं कि जयगढ़ में खजाने की खोज के समय आयकर अधिकारी आयुक्त जे.सी. कालरा जयसिंह को जयगढ़ के भीतर ले जाते और जयसिंह के बीजक के अनुसार खजाने की खोज होती। किले के अंदर सभी का प्रवेश वर्जित था, लेकिन जयपुर के पुराने बाशिंदे और नवाब साहब की हवेली के मालिक त्रिलोकीदास खण्डेलवाल को उनकी आयकर आयुक्त कालरा से घनिष्ठता के कारण खोज और खुदाई के दौरान किले के अंदर जाने का कई बार मौका मिला।