कुम्भलगढ़ किला, अरावली पहाड़ियों की पश्चिमी सीमा पर स्थित मेवाड़ किला है, जो पश्चिम भारत के राजस्थान राज्य के राजसमन्द जिले में स्थित है। ये राजस्थान के पहाड़ी किले की विश्व विरासत स्थलों में से एक है। इस किले का निर्माण 15वीं सदी के दौरान राणा कुंभा ने करवाया था और 19वीं सदी के दौरान बढ़ा दिया गया। कुम्भलगढ़ महाराणा प्रताप का जन्म स्थान भी है, जो मेवाड़ के महान सम्राट और योद्धा थे। हर शाम कुछ समय के लिए इसे ज्योतिर्मय किया जाता है जो देखने में इतना आकर्षित लगता है की इसे देख लोगो की आँखे खुली रह जाती है। कुम्भलगढ़, उदयपुर के उत्तर पश्चिम से 82 km की दुरी पर स्थित है। ये किला चित्तौरगढ़ के बाद मेवाड़ का सबसे महत्वपूर्ण किला है।
समुद्र तल से लगभग 1,100 m (3,600 ft) ऊंचे अरावली श्रेणी के पहाड़ों की चोटी पर बने कुम्भलगढ़ किले की दीवार 36 km (22 mi) तक फैली हुई है, जो विश्व की दूसरी सबसे बड़ी दीवार है। किले की अग्र दीवार पंद्रह फ़ीट मोटी है। कुम्भलगढ़ में सात सृदृढ़ द्वार है। लगभग 360 से अधिक मंदिर इस किले में मौजूद है, जिनमे से 300 मंदिर प्राचीन जैन धर्म के और बाकी हिन्दू धर्म के है। महल के ऊपर से अरावली श्रेणी में कई किलोमीटर दूर फैले इस किले को देखा जा सकता है। थर रेगिस्तान के रेत के टीलों को किले की दीवारों से देखा जा सकता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, 1443 CE में, कुम्भलगढ़ के महाराणा, राणा कुंभा को इस किले की दीवार को बनाने में लगातार बार-बार असफलता मिल रही थी। एक आध्यात्मिक गुरु ने इस किले के निर्माण समस्याओं पर विचार-विमर्श किया और शासक को ये सलाह भी दी की जिस भी कारण से इस किले के निर्माण में बाधा आ रही है वो एक स्वैच्छिक मानव बलिदान से समाप्त हो जाएगी।
उन्ही अध्यात्मिक गुरु ने बताया की जहां किले का सिर होना चाहिए वह एक मंदिर का निर्माण कराया जाए और बाकि के स्थान पर किले की दीवार और किले का निर्माण कराया जाए। कुछ समय तक कोई व्यक्ति स्वैच्छिक मानव बलिदान के लिए तैयार नहीं हुआ परन्तु एक दिन एक यात्री आया और उसने इस बलिदान के लिए सहमति दे दी और धार्मिक रूप से उसकी बलि दे दी गयी। वर्तमान में किले के मुख्य द्वार, हनुमान पोल, में एक मंदिर है जो उस व्यक्ति के बलिदान को स्मरण करने के लिए बनवाया गया था।
प्रसिद्ध लोककथाओं के अनुसार, महाराणा कुंभा विशाल दीयों को प्रज्वलित करने के लिए 50 किलोग्राम घी और 100 किलोग्राम रुई का उपयोग करते थे, ये दीये वे थे जिन्हे महाराणा रात को घाटी में काम करने वाले मजदूरों को रोशनी प्रदान करने के लिए जलाया करते थे। ये विश्व की दूसरी सबसे लम्बी दीवार है, क्योकि विश्व की सबसे लम्बी दीवार चीन में है जिसे “ग्रेट वाल ऑफ़ चाइना” के नाम से जाना जाता है और इसे “ग्रेट वाल ऑफ़ इंडिया” कहा जाता है।
कुम्भलगढ़ किले का निर्माण और इसपर शासन कुंभा और उसके वंशो ने किया था, जो सिसोदिया राजपूतो के वंशंज थे। कुम्भलगढ़ की वर्तमान स्थिति को इस युग के मशहूर आर्किटेक्ट मदान ने को विकसित किया था और कहा जाता है इस किले को इन्ही ने डिजाइन किया था। मेवाड़ के राणा कुंभा का राज्य, रणथंभौर से ग्वालियर तक बढ़ा दिया गया और तत्कालीन मध्य प्रदेश के साथ साथ राजस्थान के बड़े हिस्सों को शामिल कर लिया। उनके राज्य के 84 किलो में से 32 किलो को राणा कुंभा में स्वयं डिजाइन किया था, जिनमे से सबसे बढ़ा और विस्तृत किला कुम्भलगढ़ का है।
कुम्भलगढ़ मेवाड़ और मारवाड़ को एक दूसरे से भी अलग करता है और इसका प्रयोग खतरे के दौरान मेवाड़ के शासकों द्वारा शरण के लिए किया जाता था। इसकी सबसे प्रसिद्ध घटना रजकुमर उदय की है, जो मेवाड़ के शिशु राजा थे जिन्होंने सं 1535 में तस्करी की थी, जब चित्तौड़ घेरेबंदी के अधीन आ गया था। राजकुमार उदय जिन्हे बाद में यहाँ की गद्दी पर बैठा दिया गया, उदयपुर शहर के संस्थापक भी थे। ये किला हमेशा से ही हमले के लिए अभेद्य था परन्तु केवल एक बार पानी की कमी के कारण गिर गया था।
सं 1457 में गुजरात के अहमद शाह I ने इस किले पर आक्रमण किया था परन्तु उनका ये प्रयास व्यर्थ रहा। यहां की एक स्थानीय मान्यता है की किले में स्थित बाणमाता देवता किले को सुरक्षा प्रदान करते है। इसलिए इस मंदिर को नष्ट कर दिया गया। इसके पश्चात एक बार फिर सं 1458-59 और 1467 में इस किले पर महमूद खिलजी ने आक्रमण किया परन्तु ये आक्रमण भी व्यर्थ रहा।
अकबर के सेनापति शाहबाज खान, ने सं 1576 में इस किले को अपने नियंत्रण में ले लिया। सं 1818 में, सन्यासियों के एक सशक्त गिरोह ने किले की रक्षा करने के लिए एक सेना का गठन किया, लेकिन टोड द्वारा उसे आश्वस्त कर दिया गया और किले को मराठाओं ने ले लिया। किले में अतिरिक्त संरचनाओं का निर्माण मेवाड़ के महाराणाओ ने करवाया था, परन्तु इसकी मूल संरचना का निर्माण महाराणा कुंभा ने करवाया था। किले के आवासीय इमारतों और मंदिरों को अच्छी तरह से संरक्षित किया गया। इस किले को महाराणा प्रताप के जन्मस्थान के नाम से भी जाना जाता है।
राजस्थान पर्यटक विभाग ने महाराणा कुंभा की कला और वास्तुकला के प्रति जूनून की याद में इस किले में एक तीन दिवसीय वार्षिक उत्सव का आयोजन किया था। किले के बैकग्राउंड में लाइट और साउंड का अच्छा प्रबंध किया गया था। विभिन्न संगीत कार्यक्रम और नृत्य कार्यक्रम इस उत्सव के दौरान आयोजित किये गए थे। उत्सव के दौरान आयोजित किये अन्य कार्यक्रमों में प्राचीन किले पर वाक, पगड़ी बांधना, युद्ध के लिए खींचा तानी और अन्य लोगो के बीच मेहंदी मंडाना आदि शामिल थे।
निर्माण
उन्ही अध्यात्मिक गुरु ने बताया की जहां किले का सिर होना चाहिए वह एक मंदिर का निर्माण कराया जाए और बाकि के स्थान पर किले की दीवार और किले का निर्माण कराया जाए। कुछ समय तक कोई व्यक्ति स्वैच्छिक मानव बलिदान के लिए तैयार नहीं हुआ परन्तु एक दिन एक यात्री आया और उसने इस बलिदान के लिए सहमति दे दी और धार्मिक रूप से उसकी बलि दे दी गयी। वर्तमान में किले के मुख्य द्वार, हनुमान पोल, में एक मंदिर है जो उस व्यक्ति के बलिदान को स्मरण करने के लिए बनवाया गया था।
प्रसिद्ध लोककथाओं के अनुसार, महाराणा कुंभा विशाल दीयों को प्रज्वलित करने के लिए 50 किलोग्राम घी और 100 किलोग्राम रुई का उपयोग करते थे, ये दीये वे थे जिन्हे महाराणा रात को घाटी में काम करने वाले मजदूरों को रोशनी प्रदान करने के लिए जलाया करते थे। ये विश्व की दूसरी सबसे लम्बी दीवार है, क्योकि विश्व की सबसे लम्बी दीवार चीन में है जिसे “ग्रेट वाल ऑफ़ चाइना” के नाम से जाना जाता है और इसे “ग्रेट वाल ऑफ़ इंडिया” कहा जाता है।
कुम्भलगढ़ किले का निर्माण और इसपर शासन कुंभा और उसके वंशो ने किया था, जो सिसोदिया राजपूतो के वंशंज थे। कुम्भलगढ़ की वर्तमान स्थिति को इस युग के मशहूर आर्किटेक्ट मदान ने को विकसित किया था और कहा जाता है इस किले को इन्ही ने डिजाइन किया था। मेवाड़ के राणा कुंभा का राज्य, रणथंभौर से ग्वालियर तक बढ़ा दिया गया और तत्कालीन मध्य प्रदेश के साथ साथ राजस्थान के बड़े हिस्सों को शामिल कर लिया। उनके राज्य के 84 किलो में से 32 किलो को राणा कुंभा में स्वयं डिजाइन किया था, जिनमे से सबसे बढ़ा और विस्तृत किला कुम्भलगढ़ का है।
कुम्भलगढ़ मेवाड़ और मारवाड़ को एक दूसरे से भी अलग करता है और इसका प्रयोग खतरे के दौरान मेवाड़ के शासकों द्वारा शरण के लिए किया जाता था। इसकी सबसे प्रसिद्ध घटना रजकुमर उदय की है, जो मेवाड़ के शिशु राजा थे जिन्होंने सं 1535 में तस्करी की थी, जब चित्तौड़ घेरेबंदी के अधीन आ गया था। राजकुमार उदय जिन्हे बाद में यहाँ की गद्दी पर बैठा दिया गया, उदयपुर शहर के संस्थापक भी थे। ये किला हमेशा से ही हमले के लिए अभेद्य था परन्तु केवल एक बार पानी की कमी के कारण गिर गया था।
सं 1457 में गुजरात के अहमद शाह I ने इस किले पर आक्रमण किया था परन्तु उनका ये प्रयास व्यर्थ रहा। यहां की एक स्थानीय मान्यता है की किले में स्थित बाणमाता देवता किले को सुरक्षा प्रदान करते है। इसलिए इस मंदिर को नष्ट कर दिया गया। इसके पश्चात एक बार फिर सं 1458-59 और 1467 में इस किले पर महमूद खिलजी ने आक्रमण किया परन्तु ये आक्रमण भी व्यर्थ रहा।
अकबर के सेनापति शाहबाज खान, ने सं 1576 में इस किले को अपने नियंत्रण में ले लिया। सं 1818 में, सन्यासियों के एक सशक्त गिरोह ने किले की रक्षा करने के लिए एक सेना का गठन किया, लेकिन टोड द्वारा उसे आश्वस्त कर दिया गया और किले को मराठाओं ने ले लिया। किले में अतिरिक्त संरचनाओं का निर्माण मेवाड़ के महाराणाओ ने करवाया था, परन्तु इसकी मूल संरचना का निर्माण महाराणा कुंभा ने करवाया था। किले के आवासीय इमारतों और मंदिरों को अच्छी तरह से संरक्षित किया गया। इस किले को महाराणा प्रताप के जन्मस्थान के नाम से भी जाना जाता है।
संस्कृति