मतीरे की राड़" - जब एक तरबूज के लिए लड़ी गई लड़ाई और शहीद हो गए हजारो सिपाही
यू तो राजस्थान का अजर अमर इतिहास जग जाहिर है। इस पूज्य वीरवर धरा पर अनेको अनेक वीर पैदा हुए जो अपनी वीरता से अनेको लड़ाईया लड़ कर इतिहास में अमर हो गए। आज हम आपको एक ऐसी लड़ाई के बारे में बताने जा रहे है जो की एक तरबूज के लिए लड़ी गई और इस लड़ाई में हजारो सिपाही शहीद हो गए।
यह लड़ाई दुनिया की एक मात्र ऐसी लड़ाई है जो की केवल एक फल के लिए लड़ी गयी और इतिहास में इसे "मतीरे की राड़" के नाम से जाना जाता है। यह कहानी है 1644 ईस्वी की जब बीकानेर रियासत का सीलवा गांव ओैर नागौर रियासत का जाखणियां गांव जो की एक दूसरे के समानांतर स्थित थे। यह दोनों गांव नागौर रियासत और बीकानेर रियासत की अंतिम सीमा थी।
बीकानेर और नागौर रियासतों के बीच एक अजब लडाई लड़ी गयी थी। एक मतीरे की बेल बीकानेर रियासत की सीमा में उगी किन्तु नागौर की सीमा में फ़ैल गयी। उस पर एक मतीरा यानि तरबूज लग गया। एक पक्ष का दावा था कि बेल हमारे इधर लगी है, दूसरे का दावा था कि फ़ल तो हमारी ज़मीन पर पड़ा है। उस मतीरे के हक़ को लेकर युद्ध हुआ जिसे इतिहास में "मतीरे की राड़" के नाम से जाना जाता है।
नागौर और बीकानेर की रियासतोंके मध्य 'मतीरे' को लेकर झगड़ा हो गया और यह झगड़ा युद्ध में तब्दील हो गया। इस युद्ध में नागौर की सेना का नेतृत्व सिंघवी सुखमल ने किया जबकि बीकानेर की सेना का नेतृत्व रामचंद्र मुखिया ने किया था। उस समय बीकानेर के शासक राजा करणसिंह थे और वह मुगलो के लिए दक्षिण अभियान पर गये हुए थे। जबकि नागौर के शासक राव अमरसिंह थे। राव अमरसिंह भी मुग़ल साम्राज्य की सेवा में थे। यह दोनों रियासते मुग़ल साम्राज्य की अधीनता स्वीकार कर चुकी थी।
इसलिए राव अमरसिंह ने आगरा लौटते ही बादशाह को इसकी शिकायत की तो राजा करणसिंह ने सलावतखां बख्शी को पत्र लिखा और बीकानेर की पैरवी करने को कहा था। लेकिन यह मामला मुग़ल दरबार में चलता उससे पहले ही युद्ध हो गया। इस युद्ध में नागौर की हार हुई । बीकानेर की सेना जीत गयी और उन्हें यह तरबूज हजारो लोगो की शहादत के बाद खाने को मिला।
यू तो राजस्थान का अजर अमर इतिहास जग जाहिर है। इस पूज्य वीरवर धरा पर अनेको अनेक वीर पैदा हुए जो अपनी वीरता से अनेको लड़ाईया लड़ कर इतिहास में अमर हो गए। आज हम आपको एक ऐसी लड़ाई के बारे में बताने जा रहे है जो की एक तरबूज के लिए लड़ी गई और इस लड़ाई में हजारो सिपाही शहीद हो गए।
बीकानेर और नागौर रियासतों के बीच एक अजब लडाई लड़ी गयी थी। एक मतीरे की बेल बीकानेर रियासत की सीमा में उगी किन्तु नागौर की सीमा में फ़ैल गयी। उस पर एक मतीरा यानि तरबूज लग गया। एक पक्ष का दावा था कि बेल हमारे इधर लगी है, दूसरे का दावा था कि फ़ल तो हमारी ज़मीन पर पड़ा है। उस मतीरे के हक़ को लेकर युद्ध हुआ जिसे इतिहास में "मतीरे की राड़" के नाम से जाना जाता है।
नागौर और बीकानेर की रियासतोंके मध्य 'मतीरे' को लेकर झगड़ा हो गया और यह झगड़ा युद्ध में तब्दील हो गया। इस युद्ध में नागौर की सेना का नेतृत्व सिंघवी सुखमल ने किया जबकि बीकानेर की सेना का नेतृत्व रामचंद्र मुखिया ने किया था। उस समय बीकानेर के शासक राजा करणसिंह थे और वह मुगलो के लिए दक्षिण अभियान पर गये हुए थे। जबकि नागौर के शासक राव अमरसिंह थे। राव अमरसिंह भी मुग़ल साम्राज्य की सेवा में थे। यह दोनों रियासते मुग़ल साम्राज्य की अधीनता स्वीकार कर चुकी थी।
इसलिए राव अमरसिंह ने आगरा लौटते ही बादशाह को इसकी शिकायत की तो राजा करणसिंह ने सलावतखां बख्शी को पत्र लिखा और बीकानेर की पैरवी करने को कहा था। लेकिन यह मामला मुग़ल दरबार में चलता उससे पहले ही युद्ध हो गया। इस युद्ध में नागौर की हार हुई । बीकानेर की सेना जीत गयी और उन्हें यह तरबूज हजारो लोगो की शहादत के बाद खाने को मिला।