तनोट माता मंदिर या मातेश्वरी तनोट राय मंदिर वही मंदिर है जिसे आपने बॉलीवुड 'बॉर्डर' फिल्म में कई बार देखा है। 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान पाकिस्तान द्वारा भारी गोलीबारी के बावजूद तनोट माता मंदिर अछूता रहा।
यह मंदिर भारत पाकिस्तान सीमा के बहुत करीब स्थित है - और पर्यटकों को इस मंदिर से आगे जाने की इजाजत नहीं है। प्राचीनतम चरन साहित्य के अनुसार, तनोट माता, दैवीय देवी हिंगलाज माता का नया रूप है, और तनोट माता को करनी माता बनने के बाद, चरन की देवी के रूप में जाना जाता है।
तनोट माता का इतिहास
देवी तनोट को देवी हिंगलाज़ का अवतार माना जाता है जो बलूचिस्तान के लास्वेला जिले में स्थित है। 847 ईस्वी में तनोट देवी की नींव, रखी गयी थी और मूर्ति स्थापित की गयी थी । पीढीयों से भाटी राजपूत इस मंदिर की देखभाल करते आ रहे है।
प्राचीन काल में बहुत पहले मामड़िया नाम के एक चारण थे ओर उनकी कोई संतान नही थी और संतान प्राप्ति की लालसा लेकर उन्होंने सात बार हिंगलाज शक्तिपीठ की पैदल यात्रा की। तब एक बार हिंगलाज माता उनके सपने में आयी और पूछी कि तुम्हारी क्या इच्छा है तो मामड़िया ने कहा कि माता आप एक बार मेरे घर पर जन्म लें। माता ने उनको इच्छा पूर्ति का आशीर्वाद दे दिया ओर अंतर्ध्यान गयी। बाद में माता की कृपा से चारण के घर 7 पुत्रियों और 1 पुत्र ने जन्म लिया।
उन सभी पुत्र-पुत्रियों में से आवड़ माता प्रथम संतान थी जिन्होंने विक्रम संवत 808 में मामड़िया चारण के घर पर जन्म लिया। बाल्यकाल से ही आवड़ माता ने अपना चमत्कार दिखाना शूरु कर दिया। चारण के घर जन्मी सातों पुत्रियां देवी स्वरूप थी और शक्ति का प्रतीक थी। उन्होंने हूणों के आक्रमण से माड़ प्रदेश की रक्षा भी की थी
तनोट माता मंदिर का चमत्कार
इस मंदिर ने अपना चमत्कार सन 1965 में दिखाया। उस समय भारत-पाकिस्तान का युद्ध चल रहा था और उसी समय अपने कार्यों की वजह से यह मंदिर देश-विदेश में अपने चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध हो गया।जब सन 1965 के सितंबर महीने में भारत-पाकिस्तान युद्ध प्रारम्भ हुआ तो पाकिस्तानी सेना ने पूरब में किशनगढ़ से 74 किलोमीटर दूर बुइली पर अपना कब्जा कर लिया था और पश्चिम में साधेवाला से शाहगढ़ तक अपना अधिकार कर लिया था। और उत्तर में अछरी टीबा से 6 किलोमीटर दूर तक अपना के क्षेत्र पर अपना कब्जा कर लिया था।
तनोट माता मंदिर तीन दिशाओं से घिर चुका था। अब स्थिति ऐसी हो चुकी थी कि यदि पाकिस्तानी सेना इस मंदिर पर कब्जा कर ले तो वह रामगढ़ से लेकर शाहगढ़ तक के इलाके पर अपना अधिकार स्थापित कर सकता था। अब तनोट माता मंदिर पर अधिकार स्थापित करना भारत ओर पाकिस्तान दोनों के लिए महत्वपूर्ण हो गया था।
पाकिस्तानी सेना ने 17-19 नवंबर 1965 को तीन अलग दिशाओं से तनोट माता मंदिर पर आक्रमण किया। पाकिस्तानी सेना का यह आक्रमण तोप के द्वारा किया था और तोपों के गोलों की बरसात तनोट माता मंदिर पर जो रही थी। जवाब में तनोट माता के मंदिर की रक्षा के लिए मेज़र जय सिंह की कमांड में 13 ग्रेन्दिर की एक कम्पनी और सीमा सुरक्षा बल की 2 कंपनियां पाकिस्तान की पूरी ब्रिगेड का सामना कर रही थी।
जैसलमेर से Tanot Mata Temple जाने वाले मार्ग को घंटाली देवी मंदिर के पास एन्टी पर्सनल और एन्टी टैंक माइन्स लगाकर सप्लाई चैन को काट दिया था।पकिस्तानी सेना ने फिर तनोट माता मंदिर को निशाना बनाया ओर इस मंदिर पर हजारों गोले दागे।
इस युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने इस मंदिर पर लगभग 3000 से भी ज्यादा बम गिराए लेकिन इस मंदिर पर खरोंच तक नही लगी। यहाँ तक कि इस मंदिर के आँगन में गिरे लगभग 450 बम तो फटे तक नही। यह नजारा देख कर दोनों सेनाएँ आश्चर्यचकित थी। भारतीय सैनिकों ने मन की तनोट माता हमारें साथ है ओर वह हमारी रक्षा करेंगी।
कम संख्या में होनें के बाद भी भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को करारा जवाब दिया और उसके सैकड़ो सैनिकों को मार गिराया। इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने घुटने टेक दिए ओर भागने को मजबूर हो गए।
कहा जाता है कि तनोट माता ने सैनिकों के सपनें में आकर कहा था कि जब तक तुम सब मेरें मंदिर में हो, मैं तुम सभी की रक्षा करूँगी। सैनिकों की तनोट माता मंदिर की इस ऐतिहासिक जीत को देश के सभी अखबारों ने अपनी मुख्य खबर बनाया। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद इस मंदिर की सुरक्षा का जिम्मा, सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने ले लिया ओर यहाँ पर अपनी एक चौकी भी बना ली।
युद्ध के बाद, भारत की सीमा सुरक्षा बल आज तक इस पवित्र मंदिर का प्रबंधन जारी रखे हुए है। युद्ध्क्षेत्र लोंगो वाल –जैसलमेर के बहुत करीब स्थित होने के कारण, यात्री मंदिर से आगे नहीं जा सकते।
तनोट माता मंदिर, जैसलमेर तक कैसे पहुंचें
तनोट माता मंदिर जैसलमेर शहर से 150 किमी की दूरी पर स्थित है और यहाँ केवल निजी टैक्सी द्वारा जाया जा सकता है जो 2 घंटों का समय लेगी । बीएसएनएल के अलावा कोई भी मोबाइल नेटवर्क काम नहीं करता है, इसलिए सजग रहें तनोत जाने वाली सड़क मीलों तक रेत के टिब्बों और रेत के पहाड़ों से घिरा हुआ है। क्षेत्र का तापमान 49 डिग्री सेल्सियस तक जा सकता है और इस जगह के पर्यटन का आदर्श समय नवंबर से जनवरी तक है।

यह मंदिर भारत पाकिस्तान सीमा के बहुत करीब स्थित है - और पर्यटकों को इस मंदिर से आगे जाने की इजाजत नहीं है। प्राचीनतम चरन साहित्य के अनुसार, तनोट माता, दैवीय देवी हिंगलाज माता का नया रूप है, और तनोट माता को करनी माता बनने के बाद, चरन की देवी के रूप में जाना जाता है।
तनोट माता का इतिहास
देवी तनोट को देवी हिंगलाज़ का अवतार माना जाता है जो बलूचिस्तान के लास्वेला जिले में स्थित है। 847 ईस्वी में तनोट देवी की नींव, रखी गयी थी और मूर्ति स्थापित की गयी थी । पीढीयों से भाटी राजपूत इस मंदिर की देखभाल करते आ रहे है।

उन सभी पुत्र-पुत्रियों में से आवड़ माता प्रथम संतान थी जिन्होंने विक्रम संवत 808 में मामड़िया चारण के घर पर जन्म लिया। बाल्यकाल से ही आवड़ माता ने अपना चमत्कार दिखाना शूरु कर दिया। चारण के घर जन्मी सातों पुत्रियां देवी स्वरूप थी और शक्ति का प्रतीक थी। उन्होंने हूणों के आक्रमण से माड़ प्रदेश की रक्षा भी की थी
तनोट माता मंदिर का चमत्कार
इस मंदिर ने अपना चमत्कार सन 1965 में दिखाया। उस समय भारत-पाकिस्तान का युद्ध चल रहा था और उसी समय अपने कार्यों की वजह से यह मंदिर देश-विदेश में अपने चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध हो गया।जब सन 1965 के सितंबर महीने में भारत-पाकिस्तान युद्ध प्रारम्भ हुआ तो पाकिस्तानी सेना ने पूरब में किशनगढ़ से 74 किलोमीटर दूर बुइली पर अपना कब्जा कर लिया था और पश्चिम में साधेवाला से शाहगढ़ तक अपना अधिकार कर लिया था। और उत्तर में अछरी टीबा से 6 किलोमीटर दूर तक अपना के क्षेत्र पर अपना कब्जा कर लिया था।
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तनोट माता मंदिर तीन दिशाओं से घिर चुका था। अब स्थिति ऐसी हो चुकी थी कि यदि पाकिस्तानी सेना इस मंदिर पर कब्जा कर ले तो वह रामगढ़ से लेकर शाहगढ़ तक के इलाके पर अपना अधिकार स्थापित कर सकता था। अब तनोट माता मंदिर पर अधिकार स्थापित करना भारत ओर पाकिस्तान दोनों के लिए महत्वपूर्ण हो गया था।
पाकिस्तानी सेना ने 17-19 नवंबर 1965 को तीन अलग दिशाओं से तनोट माता मंदिर पर आक्रमण किया। पाकिस्तानी सेना का यह आक्रमण तोप के द्वारा किया था और तोपों के गोलों की बरसात तनोट माता मंदिर पर जो रही थी। जवाब में तनोट माता के मंदिर की रक्षा के लिए मेज़र जय सिंह की कमांड में 13 ग्रेन्दिर की एक कम्पनी और सीमा सुरक्षा बल की 2 कंपनियां पाकिस्तान की पूरी ब्रिगेड का सामना कर रही थी।
जैसलमेर से Tanot Mata Temple जाने वाले मार्ग को घंटाली देवी मंदिर के पास एन्टी पर्सनल और एन्टी टैंक माइन्स लगाकर सप्लाई चैन को काट दिया था।पकिस्तानी सेना ने फिर तनोट माता मंदिर को निशाना बनाया ओर इस मंदिर पर हजारों गोले दागे।
इस युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने इस मंदिर पर लगभग 3000 से भी ज्यादा बम गिराए लेकिन इस मंदिर पर खरोंच तक नही लगी। यहाँ तक कि इस मंदिर के आँगन में गिरे लगभग 450 बम तो फटे तक नही। यह नजारा देख कर दोनों सेनाएँ आश्चर्यचकित थी। भारतीय सैनिकों ने मन की तनोट माता हमारें साथ है ओर वह हमारी रक्षा करेंगी।
कम संख्या में होनें के बाद भी भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को करारा जवाब दिया और उसके सैकड़ो सैनिकों को मार गिराया। इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने घुटने टेक दिए ओर भागने को मजबूर हो गए।

कहा जाता है कि तनोट माता ने सैनिकों के सपनें में आकर कहा था कि जब तक तुम सब मेरें मंदिर में हो, मैं तुम सभी की रक्षा करूँगी। सैनिकों की तनोट माता मंदिर की इस ऐतिहासिक जीत को देश के सभी अखबारों ने अपनी मुख्य खबर बनाया। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद इस मंदिर की सुरक्षा का जिम्मा, सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने ले लिया ओर यहाँ पर अपनी एक चौकी भी बना ली।
युद्ध के बाद, भारत की सीमा सुरक्षा बल आज तक इस पवित्र मंदिर का प्रबंधन जारी रखे हुए है। युद्ध्क्षेत्र लोंगो वाल –जैसलमेर के बहुत करीब स्थित होने के कारण, यात्री मंदिर से आगे नहीं जा सकते।
तनोट माता मंदिर, जैसलमेर तक कैसे पहुंचें
तनोट माता मंदिर जैसलमेर शहर से 150 किमी की दूरी पर स्थित है और यहाँ केवल निजी टैक्सी द्वारा जाया जा सकता है जो 2 घंटों का समय लेगी । बीएसएनएल के अलावा कोई भी मोबाइल नेटवर्क काम नहीं करता है, इसलिए सजग रहें तनोत जाने वाली सड़क मीलों तक रेत के टिब्बों और रेत के पहाड़ों से घिरा हुआ है। क्षेत्र का तापमान 49 डिग्री सेल्सियस तक जा सकता है और इस जगह के पर्यटन का आदर्श समय नवंबर से जनवरी तक है।